Friday, July 22, 2016

अरे ! इतना भी गुस्सा क्यों ?





- इंदु बाला सिंह


सबेरे  से ही गुस्से में मन ही मन भनभना रही थी मैं । बाथरूम में घुस कर  सिटकिनी लगायी और घूमते ही पैर का चप्पल   फिसला गिरी घुटनों के बल बाथरूम के गीले फर्श पर । घुटना  छिल  गया था ।


क्रोध गायब हो गया । बुद्धि ने चेतावनी दी - शुक्र मनाओ सर के बल न गिरी   ...... नहीं तो तुम गिरी पड़ी रहती । लोग दरवाजा तोड़ने का उपाय सोंचते । अरे ! इतना भी गुस्सा क्यों ? खुद ही कुढ़ कुढ़ कर किसका भला कर  रही हो मैडम ।