Wednesday, December 2, 2015

अकृतज्ञता की सजा



-इंदु बाला सिंह


एक जंगल में एक साधू रहता था ।
साधू अपनी अपनी कुटिया में मनन चिंतन में लीन रहता था ।

एक दिन जब साधू समाधिस्थ था तब एक चूहा साधू  के शरीर पर उपर  नीचे होने लगा ।
साधू की समाधि टूट गयी ।


' क्या बात है ? तुम्हे क्या चाहिये ? ' - वे चूहे को  देख हंस कर बोले ।

' महात्मन्  ! मैं  बहुत छोटा हूं । मुझे बिल्ली से बड़ा डर लगता है । आप मुझे बिल्ली बना दीजिये । ' चूहे ने  हाथ जोड़ कर कहा ।

 साधु ने कहा -

' तथास्तु '

और पल भर में चूहा बिल्ली बन गया ।

कुछ दिन बाद बिल्ली बना चूहा फिर साधु के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया -

' महात्मन् ! जंगल में शेर सबसे शक्तिशाली है और मुझे शेर से डर लगता है  । कृपा कर के आप मुझे शेर बना दीजिये । '

साधू मन ही मन मुस्काये फिर उन्होंने कहा -

' तथास्तु '

पल भर में चूहा शेर बन गया और दहाड़ते हुये साधू की कुटिया से चला गया ।

बहुत दिनों के बाद एक बार साधू  जंगल से शहर की और जा था तभी राह में उसे  चूहे से बना शेर मिल गया ।

साधू को देख  शेर दहाड़ा बोला -

'आज मुझे बहुत भूख लगी है मैं तुझे खाऊंगा । '

चूहे की अकृतज्ञता  देख साधू बहुत दुखी हुआ ।

' जा..... तू पुनः चूहा बन जा । ' - कहते हुये साधू  ने शेर पर अपने कमंडल का जल छिड़क दिया ।

पल भर में शेर चूहा बन गया ।

और झाड़ियों छिपी बिल्ली अचंभित चूहे को चट कर गई । 

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