22 April
2015
10:14
-इंदु बाला
सिंह
तिलक
के रूपये न दे पाने के कारण कहीं पिता ने आत्महत्या कर ली तो कहीं दुल्हन ने , किसी घर से बरात लौट गयी |
खबरें सुन सुन
दुखी हो जाता है मन |
न जाने किसका
दोष है पर यह तो निर्विवाद सत्य है कि बेटे के जन्म पर लोग खुश व निश्चिन्त होते हैं |
बेटे के ब्याह
में कुछ धन आयेगा ही |
और यह भी सत्य
है कि कम से कम रुपयों में बेटी का ब्याह करना चाहता है पिता |
आज भी हम उधार
मांग कर बेटी का ब्याह करते हैं | जमीन बेच कर धन लेने की अपेक्षा उधार मांगना
बेहतर रहता है | चुका देंगे भविष्य में यह सोंच हम निश्चिन्त रहते हैं |
कम से कम
उत्तरी भारत में लड़की को पैतृक सम्पत्ति हिस्सा न ही देने का चलन है भले ही वह
कानूनन हकदार होती है |
नम्र बने लड़के
के पिता व लड़का जहां आजीवन बहु को उसको
मैके से दूर रखना चाहता है वहीं लड़की का कन्यादान कर पिता व भाई चाहते हैं लड़की खुश रहे अपने घर में
|
शायद लड़की का
घर ही वह बिंदु है जहां लड़की को कील चुभाई
जाती है |
लड़की पिता की
दुलारी ससुराल की गृहलक्ष्मी सब कुछ है |
निर्भरता सदा
ही अभिशाप रही है |
तो क्या पढ़ी
लिखी कमाऊ लड़की का ब्याह भी आज सदा की तरह ही चिंता का विषय है ?
हम सहिष्णुता
खो रहे हैं |
यह कैसी
नींव नये संसार की यों कहिये नये घर की जहां भय , त्याग ,
असहिष्णुता , ताने के कंक्रीट , सीमेंट और बालू से दीवारें बनी हैं और झूठी
मुस्कान का डिस्टेम्पर लगा है |
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