Tuesday, April 21, 2015

नया घर


22 April 2015
10:14


-इंदु बाला सिंह
तिलक के रूपये न दे पाने के कारण कहीं पिता ने आत्महत्या कर ली तो कहीं दुल्हन ने , किसी घर से  बरात लौट गयी |

खबरें सुन सुन दुखी हो जाता है मन |

न जाने किसका दोष है पर यह तो निर्विवाद सत्य है कि बेटे के जन्म पर लोग खुश व  निश्चिन्त होते हैं |

बेटे के ब्याह में कुछ धन आयेगा ही |

और यह भी सत्य है कि कम से कम रुपयों में बेटी का ब्याह करना चाहता है पिता |

आज भी हम उधार मांग कर बेटी का ब्याह करते हैं | जमीन बेच कर धन लेने की अपेक्षा उधार मांगना बेहतर रहता है | चुका देंगे भविष्य में यह सोंच हम निश्चिन्त रहते हैं |

कम से कम उत्तरी भारत में लड़की को पैतृक सम्पत्ति हिस्सा न ही देने का चलन है भले ही वह कानूनन हकदार होती है |

नम्र बने लड़के के पिता व लड़का जहां आजीवन बहु को उसको  मैके से दूर रखना चाहता है वहीं लड़की का कन्यादान कर  पिता व भाई चाहते हैं लड़की खुश रहे अपने घर में |

शायद लड़की का घर ही वह  बिंदु है जहां लड़की को कील चुभाई जाती है |

लड़की पिता की दुलारी ससुराल की गृहलक्ष्मी सब कुछ है |

निर्भरता सदा ही अभिशाप रही है |

तो क्या पढ़ी लिखी कमाऊ लड़की का ब्याह  भी  आज सदा की तरह ही चिंता का विषय है ?

हम सहिष्णुता खो रहे हैं |


यह कैसी नींव  नये संसार की यों कहिये  नये घर की जहां भय , त्याग , असहिष्णुता , ताने के कंक्रीट , सीमेंट और बालू से दीवारें बनी हैं और झूठी मुस्कान का डिस्टेम्पर लगा है |

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