Thursday, December 24, 2015

पुस्तकों की दयनीय स्थति




- इंदु बाला सिंह




- आंटी ! किताब लीजिये ।

एक दुबला पतला काला सा टाई लगाया सेल्समैन गेट के बाहर ही खड़ा हो दिखाने लगा किताब ।

- नहीं नहीं मुझे नहीं चाहिये किताब ।

घबरा कर कहा मैंने ।

मुझे उस सेल्समैन की स्थिति बड़ी दयनीय लग रही थी ।

- ले लीजिये आंटी बहुत अच्छी अच्छी रेसिपी की किताब है ।

- सब कुछ तो नेट में मिल जाता है । मुझे नहीं चाहिये किताब ।

मना तो कर दी फिर लगा ..... कैसे मर रहीं हैं पुस्तकें नेट के कारण ।

- आप  पुस्तकें किसी को गिफ्ट दे दीजियेगा ।

- नहीं नहीं ।

और मैं पुस्तकों की दयनीय स्थिति पर दुखी हो गई । 

Thursday, December 17, 2015

किताबवाला



- इंदु बाला सिंह


- वो किताब दिखाईये ।

-  एंट्रेंस की किताब है ।

मुंह टेढ़ा किया किताब  की दुकानवाले ने ।

किताब देखने को माँगनेवाला आगे चल कर इंजीनियर बना ।

और फिर एक दिन -

-  किताब दिखाईये ।

- वो एम० बी ० ए ० एंट्रेंस  की किताब है ।

आज फिर मुंह टेढ़ा हुआ किताबवाले का ।

बच्चे के साथ उसकी मां  भी थी । अपमानित हुयी  वह ।

यह वही किताब देखने को मांगनेवाला पहला बच्चा था ।

किताब देखने को मांगने पर अपमान से तिलमिलानेवाला बच्चा आज देश के प्रतिष्ठित कालेज से एम
०  बी० ए ० किया और  एक बड़ी कम्पनी में उच्च पदस्थ हुआ ।

Thursday, December 3, 2015

ज्ञानी गृहस्थ( लोक कथा )










एक  फकीर था ।

वह  प्रतिदिन एक गांव जाता था और  वहां के किसी मेहनतकश , ईमानदार और   धनी व्यक्ति के घर भोजन करता था ।

इसी क्रम में एक दिन  माणिक लाल के घर पहुंचा ।

माणिक लाल ने फकीर को बड़े  प्यार से  आसन दिया ।  उसके सामने विभिन्न प्रकार के पकवान परोसा ।

भोजन शुरू करने से पहले फकीर ने माणिक लाल की सम्पत्ति जानने चाही । फिर उसने माणिक लाल  पुत्रों के बारे में जानना चाहा ।

माणिक लाल ने कहा  -


' अतिथि महोदय ! मेरी  संतान है और मेरे पास एक हजार  मुद्रायें हैं । '

इतना सुनते ही फकीर आग बबूला हो उठा ।

' नीच ! तू सच बोलता तो क्या मैं तेरा धन ले लेता ।  सुना है कि तेरे पास अपरम्पार धन सम्पत्ति है । तेरे  चार पुत्र हैं । मैं  अन्न ग्रहण नहीं कर सकता । ' फकीर कुपित हो कर   बोला ।

माणिक लाल ने नम्रता  पूर्वक  कहा कि महोदय ! आप मेरी बात सुन लें फिर आप मुझे झूठा साबित  चाहें तो वह आपकी मर्जी ।


' महोदय ! मेरे चार पुत्र हैं । इनमे से मेरे तीन पुत्र पियक्क्ड़  हैं वे कुछ काम  धाम नहीं  हैं । जब उनको पैसों की  जरूरत पड़ती है  वे मुझे  याद करते हैं । वे मेरा धन नष्ट कर रहे हैं । इसीलिये उन तीनों पुत्रों को  मैं अपनी संतान नहीं मानता ।.....  मेरा चौथा पुत्र  मेरी दूकान में मेरी सहायता करता है । और मैं हजार की मोहरें दान व धर्म कार्य  के लिये रख छोड़ा है । '

यह सुन फकीर प्रसन्न हुआ  उसने कहा कि माणिक लाल तू तो मुझसे ज्यादा ज्ञानी है  मैं तेरे साथ भोजन ग्रहण करूंगा ।





Wednesday, December 2, 2015

अकृतज्ञता की सजा



-इंदु बाला सिंह


एक जंगल में एक साधू रहता था ।
साधू अपनी अपनी कुटिया में मनन चिंतन में लीन रहता था ।

एक दिन जब साधू समाधिस्थ था तब एक चूहा साधू  के शरीर पर उपर  नीचे होने लगा ।
साधू की समाधि टूट गयी ।


' क्या बात है ? तुम्हे क्या चाहिये ? ' - वे चूहे को  देख हंस कर बोले ।

' महात्मन्  ! मैं  बहुत छोटा हूं । मुझे बिल्ली से बड़ा डर लगता है । आप मुझे बिल्ली बना दीजिये । ' चूहे ने  हाथ जोड़ कर कहा ।

 साधु ने कहा -

' तथास्तु '

और पल भर में चूहा बिल्ली बन गया ।

कुछ दिन बाद बिल्ली बना चूहा फिर साधु के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया -

' महात्मन् ! जंगल में शेर सबसे शक्तिशाली है और मुझे शेर से डर लगता है  । कृपा कर के आप मुझे शेर बना दीजिये । '

साधू मन ही मन मुस्काये फिर उन्होंने कहा -

' तथास्तु '

पल भर में चूहा शेर बन गया और दहाड़ते हुये साधू की कुटिया से चला गया ।

बहुत दिनों के बाद एक बार साधू  जंगल से शहर की और जा था तभी राह में उसे  चूहे से बना शेर मिल गया ।

साधू को देख  शेर दहाड़ा बोला -

'आज मुझे बहुत भूख लगी है मैं तुझे खाऊंगा । '

चूहे की अकृतज्ञता  देख साधू बहुत दुखी हुआ ।

' जा..... तू पुनः चूहा बन जा । ' - कहते हुये साधू  ने शेर पर अपने कमंडल का जल छिड़क दिया ।

पल भर में शेर चूहा बन गया ।

और झाड़ियों छिपी बिल्ली अचंभित चूहे को चट कर गई । 

Sunday, November 29, 2015

पुरानी आंटी और याद



-इंदु बाला सिंह


आज मेरे घर आयी थी मेरी एक पुरानी आंटी ( फ्रेंड आंटी ,दीदी कुछ भी कह  भी सकते हैं ) ।

' क्या करती है तुम दिन भर आती नहीं मेरे घर । क्या करती हो तुम दिन भर ? '

' ऐसे ही  , थोड़ा बहुत लिखा करती हूं । कहानी वैगरह । '

आंटी जी ने बड़ी बड़ी आँख कर मेरा चेहरा देखा । फिर बोली -

' तुम तो नाटक लिखी थी न । हम लेडीज लोग नाटक किये थे । '

मैं चौंक गयी । फिर याद आया -

कालेज डेज में मैंने लिख  के दिया था उन्हें एक  नाटक  क्लब में एक्ट करने के लिये ।




Thursday, November 26, 2015

शब्दों की शालीनता


26 November 2015
22:11

-इंदु बाला सिंह

रह रह कर याद आती है मुझे अपने स्वजन की कहावत -

' यही मुंह पान खिलाता है और यही मुंह लात | '

और मैं बात चीत में शब्दों की शालीनता नहीं खोती |

देखती हूं कड़वी बोली बोलनेवाले उंची आवाज में बोलनेवाले जीतते दीखते हैं जीवन में | एकपल को मन डगमगाता है |

बुद्धि थाम लेती है मन -

' गलत बात ...टीचरी की जीवन भर ....गलत काम को प्रश्रय देना अच्छी बात नहीं | '


' काश टीचरी का पेशा न अपनाया होता ! ' - दुखी मन अफ़सोस कर बैठता है |

Tuesday, November 17, 2015

प्रसाद छठ मैय्या का


18 November 2015
11:03

-इंदु बाला सिंह



-आप दुखी दिख रही हैं ......छठ मैय्या का प्रसाद ले लीजिये |

-लेकिन मैं आपको पहचानती नहीं |

-मैं पहचानता हूं आपको |

-माफ़ कीजिये .... मैं आपको नहीं पहचानती |

-छठ मैय्या का प्रसाद मना करती है .......


उस ने आँख तरेरी और निकल गया साईकिल से |

Monday, November 16, 2015

गेंद और बच्चा


17 November 2015
07:42


-इंदु बाला सिंह


बच्चा रबर बाल खेल रहा है पोर्टिको में |


1

ठप्प ..ठप्प ....ठप्प

अरे ! घर में मत खेलो गेंद ...... बाहर खेलो | - नाना

बाहर तो सड़क पर गाडियां चलती हैं | - पितृहीन बच्चे ने सोंचा

और एक दिन गेंद जा लगी पोर्टिको में खुलने वाली कांच पे | टूट गया कांच टुकड़े टुकड़े में |

बच्चे के मां की सांस उपर की उपर नीचे की नीचे |

बच्चे की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली बहन ने जमीन पर गिरे एक एक कांच चुना ......फेविकोल से जोड़ कर खिड़की के पल्ले में वापस चिपकाया |

बच्चे की मां की जान में जान आयी |

2

ठप्प .....ठप्प ....ठप्प

बच्चा गेंद खेल रहा था पोर्टिको में |
दोपहर के तीन बजे थे |
गेंद खेलता है ....... सोने नहीं देता है | - बगल घर की खिड़की खुली ........ चीखा पड़ोसी  |

डर गया बच्चा |

उसने गेंद खेलना रोक दिया |

डर गयी बच्चे की मां |


बच्चे की बहन कुढ़ गयी |

Saturday, November 14, 2015

छोटी बच्ची 1


16 July 2015
15:43
-इंदु बाला सिंह


चार साल की छोटी बच्ची अपनी गोद में छ: महीने की बहन लिये खड़ी थी सड़क पर | पास में शादी हो रही थी |
.........................................

आधी रात को नींद खुल गयी बच्ची की |

माँ उसकी बहन को गोद में लिये रो रही थी |

बगल कमरे से बड़ी माँ आयी और उस बच्ची को ले कर अपने कमरे में चली गयी | डरी हुयी बच्ची दुसरे  कमरे में सो गयी |

........................................................

उस बच्ची की बहन मर चुकी थी |

बरसों बाद उस बच्ची को पता चला कि उस की बहन को दिफ्थेरिया हुआ था |

उस बच्ची के पिता दुसरे शहर में नौकरी करते थे |


पांच साल की बच्ची पिता के साथ पैदल स्कूल जा रही थी | वह खुश थी | पिता के कदम से कदम न मिला पा रही थी वह बच्ची | बार बार पीछे छूटी जा रही थी वह |



: साल की बच्ची माँ के पास कमरे में ज्यों ही घुसने लगी एक खून से सने हाथवाली औरत ने उसे रोक दिया | हाथ का खून देख डर गयी वह बच्ची |

उस बच्ची की माँ ने एक बेटी पैदा की थी


' नहीं मैं नहीं खाऊंगी भात दाल | मुझे खिचड़ी खानी है | ' बच्ची को केवल खिचड़ी भाती थी |

भाभी लकड़ी के चूल्हे के सामने लकड़ी के जलते कोयले को बाहर निकाल उसी पर एक छोटी बटुली में थोड़ा पका दाल और चावल डाल कर रख देती थी | बस छोटी बच्ची को खिचड़ी मिल जाती थी रोज खाने में |


' मेरे पास क्यों घुसती है ... जा अपने भतार के पास | ' 

भाभी चिपकी ननद को हर समय छेड़ती थी |
|

छोटी बच्ची सोंचती थी |

' कितनी गलत बात बोलती है भाभी | मेरा चचेरा भाई क्या मेरा भतार है ? '

उस छ: वर्षीय बच्ची को भतार शब्द का मतलब समझ आ चूका था |

पूजा का प्रसाद हाथ में ले कर लौट रही छोटी बच्ची और पीछे पीछे प्रसाद के लालच में चलता कुत्ता कितना भयभीत पल था |

उस प्रसाद को घर अपनी माँ तक पहुंचाना था उस बच्ची को |

वह भय आज भी महसूस कर सकती हूँ मैं |


और आज सोंचती हूं क्यों नहीं फेंक दी वह छोटी बच्ची अपने हाथ का प्रसाद सडक पर | कम से कम कुत्ते के भय से तो मुक्त हो जाती वह |

Thursday, November 12, 2015

सासु माँ गुम गयी


13 November 2015
11:37

-इंदु बाला सिंह


--भाभी ! भैय्या कहां गये हैं ?
--अपनी माँ को ले के अस्पताल |

और मैंने सोंचा शायद वह ' अपनी माँ ' भाभी की कुछ नहीं लगती |

आजकल सासु माँ का सम्बोधन विलुप्त है | 

Wednesday, October 21, 2015

सबसे शक्तिशाली अस्त्र ( लोक कथा )


21 October 2015
22:31





एक दिन राजा रूप राय अपने मत्री  के साथ अपने बाग में सबेरे सबेरे भ्रमण कर रहे थे | एकाएक उनके मन में एक प्रश्न कौंधा -

' संसार में सबसे शक्तिशाली अस्त्र कौन सा है ? '

राजा ने अपने मंत्री से अपने मन में उठे प्रश्न का उत्तर जानना चाहा |

प्रश्न सुन कर मंत्री सोंचने लगा -

' तलवार , बरछा , भाला सभी अस्त्र अपने अपने स्थान पर शक्तिशाली हैं | कोई अस्त्र तो किसी से कम नहीं | '

मंत्री को राजा के प्रश्न का कोई उत्तर न सुझा |

हार कर मंत्री ने कहा -

' राजन ! मुझे आपके प्रश्न का उत्तर पता करने के लिये थोड़ा समय दीजिये | '

राजा ने कहा -

' ठीक है | मैं तुम्हें सोंचने के लिये पन्द्रह दिन का समय देता हूं | '

अब मंत्री परेशान था | एक एक दिन बीत रहे थे पर उत्तर न मिल रहा था मंत्री को राजा के प्रश्न का |

एक दिन सुबह सुबह मंत्री नदी में नहा कर अपने लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाया और लौट रहा था तभी राह में हल्ला हुआ -

' भागो ! भागो ! '

मंत्री ने पीछे मुड़ कर देखा कि सब इधर उधर भाग रहे हैं और एक सांड उनकी ओर दौड़ता हुआ चला आ रहा है |

सांड मत्री के नजदीक पहुंच चूका था |

मंत्री ने समझ लिया कि अगर वह भागेगा तो भी सांड से बच न सकेगा इसलिये वह अपने ही स्थान पर खड़ा रहा | ज्यों ही सांड उसके पास पहुंचा उसने पूरी ताकत से अपने हाथ का लोटा सांड के माथे पर दे मारा |

सांड बौखला कर पीछे हटा और मंत्री उस स्थान से सरपट भागा |

मंत्री को राजा के प्रश्न का उत्तर मिल गया था |

दुसरे दिन मंत्री राजा के दरबार में पहुंचा और राजा से कहा -

' राजन ! सबसे शक्तिशाली अस्त्र ' साहस '  है | '

मत्री ने राजा को अपनी सुबहवाली घटना सुनाई और कहा कि ' साहस ' के कारण ही वह सांड से भिड़ सका था |


राजा रूप राय अपने मंत्री के उत्तर से खुश हुये  |

Friday, October 16, 2015

बकरे की माँ ( लोक कथा )


16 October 2015
13:00





बिर्जन ने बकरी पाली थी |

बकरी और मेमना खूब खेलते थे |

धीरे धीरे कुछ महीनों में मेमना एक हृष्ट पुष्ट बकरा बन गया |

अब बकरी को चिंता होने लगी |

बकरी ने सोंचा -

जरूर एक दिन मालिक मेरे मेमने को इतना हृष्ट देख किसी दिन काट कर खा जायेगा |

एक रात बकरी ने अपने मेमने को समझाया -

' देख बेटा ! तू बड़ा हो गया है | किसी दिन भी मालिक तुझे काट कर पकायेगा अपनी रसोईं में और फिर खा लेगा | देख बेटा ! तू जंगल में भाग जा | वहां तुझे खाने के लिये पौधों के हरे पत्ते मिलेंगे और पीने के लिये नदी का ठंडा जल | वहां तू खूब घूमना और खुश रहना | '

और रात में ही बकरी ने अपने मेमने की रस्सी दांत से चबा चबा कर तोड़ डाली |

दुखी मन से बकरे की माँ ने अपने प्राणप्यारी सन्तान को आशीर्वाद दे कर विदा कर दिया | 

सुबह बिर्जन ने देखा -

बकरा खूंटे पर नहीं है |


बिर्जन ने  अपना माथा पीट लिया |

Sunday, October 11, 2015

सुविधाजनक आकांक्षायें और भय ( लोक कथा )



12 October 2015
11:45



एक बार एक बटोही अकेले शहर की ओर अपने मित्र से काम की तलाश में मिलने जा रहा था |
गर्मी का मौसम था | राह में कोई छायादार पेड़ न था | प्यासा बटोही चलता जा रहा था |
सामने उसे एक पेड़ दिखाई दिया |

बटोही ने सोंचा -
इसी पेड़ के नीचे विश्राम कर लेता हूं |

बटोही बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया |

बटोही ने सोचा -
काश मुझे पानी मिल जाता |

तभी बटोही ने देखा एक ग्रामीण उसकी ओर आ रहा है | उसके हाथ में जल भरा लोटा है | पेड़ के नीचे रुके बटोही को देख उस ग्रामीण ने उसे पानी पिला दिया |

थोड़ी देर में बटोही को भूख लगी | उसने सोंचा -

काश कोई उसे भोजन करा देता |

थोड़ी देर में बटोही ने देखा कि जिस ग्रामीण ने उसे पानी पिलाया था वही थाली में भोजन और एक लोटे में पानी ले कर उसकी ओर आ रहा है |

बड़े प्यार से उस ग्रामीण ने बटोही को  भोजन कराया और पानी पिलाया |

बटोही भजन कर कर के तृप्त हुआ | फिर उसने सोंचा -

अभी तो दोपहर है सिर पर सूरज तप रहा है | काश खाट मिल जाती और वह थोड़ी झपकी ले लेता |

तभी बटोही ने देखा कि वही ग्रामीण एक खाट ले के उसकी ओर आ रहा है |

बटोही को लेटने के लिये अब खाट भी मिल गयी थी |

बटोही खाट पर लेट गया और सोंचा -

जो मैं सोंचता हूं वह हो जाता है | इस सूनी जगह में मुझे आरामदायक सुविधायें मिल गयीं |

उसे ज्ञान न था कि वह कल्पवृक्ष के नीचे आराम कर रहा है | वही कल्पवृक्ष जो अपने नीचे खड़े हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी करता है |

अब वह डर गया |

अगर यहाँ शेर आ जाये तो ?

और पल भर में एक शेर उसके सामने आ गया |

शेर ने एक दहाड़ मारी और बटोही को फाड़ कर खा गया |

Friday, October 9, 2015

सत्तर पार की मिसेज पुजारी


09 October 2015
22:14


-इंदु बाला सिंह

सत्तर पार की मिसेज पुजारी के गुजरने की खबर पूरे एक माह बाद मुझे मिली |

आजकल माता या पिता के मौत की खबर बच्चे अपने मित्रों को देते हैं और सारे क्रिया कर्म सम्पन्न कर देते हैं |

मिसेज पुजारी की खबर पा कर मुझे दुःख के साथ खुशी भी हुयी | वर्षों से बिस्तर पर थीं वे |
न जाने क्या बीमारी थी उन्हें |

अच्छा हुआ पति के जीते जी गुजर गयीं |

मिस्टर वर्मा पहले गुजरते तो न जाने कितने ताने सुनना पड़ता उन्हें अपने बेटे बहू से |

हमारे मुहल्ले में लोग अपने अड़ोस पड़ोस को केवल चेहरे से ही पहचानते हैं |

मिसेज पुजारी को भी मैं चेहरे से ही पहचानती थी |

एक दिन अपनी पड़ोसन से बतियाते हुये पता चला था कि मिसेज पुजारी बंगालन हैं |

चौक गयी मैं - जरूर लव मैरेज था होगा | वर्ना अरेंज्ड मैरेज कौन करता है दुसरे जात में |

और जिस प्यार से लाये थे होंगे घर में उसी प्यार से पार भी लगा दिया मिसेज पुजारी को उनके पति ने |
आज भी धीमे धीमे कदमों से चलते हुये देखती हूं कभी कभार मिस्टर पुजारी को तो रहस्यमयी बंगालन मिसेज पुजारी याद आ जाती है मुझे |


Sunday, October 4, 2015

दुष्टता की सजा ( लोक कथा )


04 October 2015
12:22

-इंदु बाला सिंह

एक बार सियार और भालू किसी बात पर लड़ पड़े |

पल भर दोनों एक दुसरे के दुश्मन बन गये थे , तभी उनकी सामने से गुजरते कछुये पर पड़ी | दोनों की आंखें चमक गयीं |

सियार गांव से एक झोला लाया और उसमें कछुये को उठा कर रख लिया |

सियार ने  भालू से कहा -

' इस झोले का मुंह बांध कर रख मैं अपने घर में रख देता हूं और हम घूम फिर कर देखते हैं कोई और शिकार | हो सकता है हमें कोई दूसरा शिकार भी मिले | '

सियार और भालू की कारस्तानी खरगोश देख रहा था | उसने कछुये  को बचाने की सोंची |

वह भालू और सियार से थोड़ी  दूर खड़े हो कर चिल्लाया -

' अरे देखो ...देखो ...खेत की फसल हिरण खा रहे हैं | ' और दौड़ा खरगोश खेत की तरफ |

खरगोश की बात सुनते ही भालू और सियार के मुंह में पानी भर आया |

' अरे ! आज तो हिरण का मॉस खाने को मिलेगा | '

वे दोनों खेत की और दौड़ पड़े |

खरगोश रास्ता बदल कर सियार के घर आया और  झोले का मुंह खोल दिया |

कछुआ झोले से बाहर निकल आया और खरगोश को धन्यवाद दिया |

कछुये ने कहा -

' उसकी मुसीबत में  वह भी जरूर उसकी सहायता करेगा | '

अब खरगोश मधुमक्खियों  के पास गया | वह उनसे भालू और सियार की दुष्टता के बारे में बताया |

मधुमक्खियों ने खरगोश को सहायता करने की ठानी |

खरगोश ने मधुमक्खियों से सियार के झोले में घुस जाने को कहा | फिर खरगोश ने झोले का मुंह बांध दिया |

खरगोश ने मधुमक्खियों से कहा कि जैसे ही सियार झोले का मुंह खोलेगा तुम लोग मिल के काटना भालू और सियार को |

और खरगोश वहां से चला गया |

खेतों में हिरण न मिला भालू और सियार को | वे दुखी मन से लौटे |

' कोई बात नहीं घर में कछुआ है न | ' सियार ने भालू से कहा |

सियार ने ज्यों ही झोले का मुंह खोला झोले में बंधी  मधुमक्खियां निकलीं और सियार और भालू पर टूट पड़ीं |

भालू और सियार चीखते हुये भागे |







  

Friday, October 2, 2015

अकेली औरत


02 October 2015
23:40


-इंदु बाला सिंह

हंस कर कहा इंजीनियर की पत्नी सोना ने अपनी कामवाली से -

' माँ बेटी को अलग अलग कार्ड दे देना अपनी बेटी की शादी में तुम | मैंने तो नहीं बुलाया था बेटी को अपने घर के फंक्शन में | केवल माँ को ही बुलाया था |'

अपमान से मुंह काला हो गया था स्निग्धा  का मुंह सुन कर प्रथम तल से आती किरायेदार की आवाज |

स्निग्धा ने सकपका के अपनी चालीस वर्षीया बेटी का मुंह देखा |

उसकी चालीस वर्षीया बेटी आफिस से लौट कर चाय पी रही थी |

माँ ने अपने मकान में अपनी बेटी स्निग्धा को रहने के लिये एक कमरा दे कर मुक्ति पायी थी |

चार बच्चों की माँ के दुखो को बांटनेवाला कोई न था | जनूनी की तरह पैसा कमाना जाना था स्निग्धा ने |


और स्निग्धा अब अपनी धनाढ्य माँ के गले हड्डी बन गयी  थी |

Thursday, August 6, 2015

स्वर्ग में स्थान ( लोक कथा )


07 August 2015
07:08


' भगवन ! आप उस किसान के लिये अभी से स्वर्ग में स्थान आरक्षित कर लिये हैं पर अपने पुजारी के लिये नहीं | '

एक दिन एक भक्त भगवान से बोला |

भगवान मौन रहे |


' यह तेल का पात्र अपने हाथ में पकड़ कर सारी दुनिया की परिक्रमा करो लेकिन ख्याल रखना एक भी तेल की बूंद धरती पर न गिरे | ' -भगवान ने एक तेल से भरा  पात्र अपने भक्त को पकड़ाते हुये कहा |

भक्त दुनिया की परिक्रमा कर के लौट आया और तेल का पात्र वापस भगवान को पकड़ा दिया |


' भक्त ! तुमने कितनी बार मेरा स्मरण किया ? '

' भगवन ! मेरा ध्यान तो तेल के पात्र में था | हमेशा सोंचता रहा कहीं तेल छलक के नीचे न गिर जाय | मैं सदा इसी चेष्टा में लगा रहा | ' - भक्त ने उत्तर दिया |

' वह किसान भी जब हर रोज अपना हल बैल ले के जब अपने घर से निकलता है तब मुझे गुहार लगाता है ....हे ईश्वर ! मेरी फसल अच्छी हो ....और फिर वह दिन भर अपने खेतों में मन लगा कर काम करता है | शाम को अपने वह अपने परिवार के सुख दुःख का ख्याल रखता है | '

भक्त को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था |



Wednesday, August 5, 2015

माँ की चुप्पी ( लोक कथायें )


06 August 2015
08:34

-इंदु बाला सिंह

सिद्धेश नाम का एक लड़का था | वह आये दिन स्कूल में अपने सहपाठियों के पेन , रबर ,पेंसिल चुराता था | स्कूल के शिक्षक सिद्धेश को सजा दे के परेशान थे |
घर में सिद्धेश की माँ से शिकायत कर कर के थक चुके थे |
सिद्धेश की माँ घरों में काम करती थी | चीनी , चायपत्ती , साबुन की छोटी बट्टी मालिक के घर से चुरा कर अपने घर लाना उसकी आदत थी | कभी कभी तो वह घरों में जमीन पर गिरे सिक्के भी चूरा लेती थी | उसे सिद्धार्थ का पेन , पेन्सिल इत्यादि चुराना आम बात लगती थी |
सिद्धेश के पिता सुबह सुबह शहर में मजूरी करने जाते थे तो शाम को लौटते थे |
पढ़ाई में कमजोर सिद्धेश घर के अभाव के कारण धीरे धीरे कुछ वर्षों में एक बड़ा चोर बन गया | वह बसों में पाकेटमारी करने लगा |
आखिर एक बार सिद्धार्थ पुलिस की पकड़ में आ गया | उसे कोर्ट में जज ने एक साल की सजा सुनायी |
सिद्धार्थ ने जज से अपनी माँ से एक मिनट बात करने की आज्ञा मांगी |
माँ को अपने पुत्र सिद्धेश से एक मिनट के लिये मिलने की सहमति मिल गयी |
माँ पुत्र से मिलने कटघरे के पास खड़ी हुयी |
सिद्धेश ने माँ के कान में कुछ फुसफुसा कर कहने की चेष्टा की और फट से उसका कान काट लिया | फिर वह जोर से वह चीखा -
इसी कान से तुम सुनती थी न मेरी स्कूल में की जानेवाली चोरी | तुमने कभी न टोका | तुम चुप रहती थी | आज देखो मैं बड़ा चोर बन गया हूं |

Wednesday, July 22, 2015

पैतृक अमरुद का पेड़ ( लोक कथायें )


22 July 2015
23:20
-इंदु बाला सिंह


मुकुंद चंद नामक एक व्यापारी था | उसके तीन बेटे थे |

एक बार वह बीमार पड़ा और मर गया |

अब घर की जिम्मेवारी बेटों पर आ पड़ी |

वे कुछ काम तो करते नहीं थे पिता के रखे पैसों से घर घर चला ,पर कब रखा पैसा चलता

पिता का रखा पैसा भी खत्म हो गया |

घर में दो अमरुद के पेड़ थे | ये बारहमासी पेड़ थे | इनमें साल भर अमरुद फलता था | एक भाई अमरुद तोड़ता था | दूसरा भाई  अमरुद को टोकरी में  भर कर शहर के बाजार में बेच आता था | तीसरा भाई उन पैसों से घर का सामान लाता था |

घर में दरिद्रता फ़ैली थी | कोई भाई शहर में जा कर काम ढूंढना न चाहता था |

बस किसी तरह घर में रुखा सूखा खा कर जी रहे घर के प्राणी |

एक बार मुकुंद चंद के मित्र राधेश्याम आये अपने गुजरे हुये मित्र के घर | घर का हाल देख वे बहुत  दुखित हुये |

वे सोंचे कि घर में जब तक अमरुद का पेड़ है तब तक ये लड़के कोई काम न करेंगे |

अमरुद न मिलने पर ये तीनों भाई जरूर कुछ न कुछ काम ढूंढेगे |

उसी रात उस मेहमान ने दोनों अमरुद का पेड़ काट दिया |

सुबह अपने कते अमरुद का पेड़ देख के तीनों भाई बड़े दुखी हुये |

पर चूँकि तीनों भाई  सौम्य थे , वे पेड़ कटने का दर्द सह लिये |

पिता का मित्र  भोर भोर चला गया |

एक साल बाद राधे श्याम फिर लौटा मुकुंद चंद के बेटों के घर |

तीनों बेटे शहर में काम करने लगे थे |


घर की स्थिति सुधर चुकी थी |

Monday, July 13, 2015

TEACHER / STUDENTS -5 तुमको भी मिलेगा लड्डू


13 July 2015
21:26

-इंदु बाला सिंह

-टीचर ! सुमित बोला था न आपसे कि मैथ्स में उसका ट्वेंटी आउट ऑफ़ ट्वेंटी आएगा क्लास टेस्ट में .... उसको ट्वेंटी मिला ...उपरवाले ट्वेंटी के जीरो ने धक्का दिया टू को ....टू गिर गया नीचे ....फिर जीरो बैठा लिया अपने बगल में ...... अपने दोस्त जीरो को ....और सुमित को मिल गया दो ठो जीरो |


-अच्छा है ! खाने दो सुमित को दो ठो लड्डू ..और बैठे रहेगा वह अगले साल भी आठवीं में ..... खोलो अपनी मैथ्स बुक ...शुरू करो साल्व करना सम्स ...नहीं तो परीक्षा में तुमको भी मिलेगा लड्डू |

Thursday, July 2, 2015

मैंने भी देखी थी उड़ने तश्तरी


02 July 2015
10:55


-इंदु बाला सिंह



उड़न तश्तरी की बात चली आठवीं कक्षा के जीरो पीरियड में |

सब छात्र इंटरनेट की खबरों में बयान किये गये विवरणों में पढ़े हुये अनुभव साझा कर रहे थे |

इसी बीच सिमरन उठ खड़ा हुआ |

-टीचर मैंने देखी है उड़न तश्तरी |

कक्षा के अन्य छात्रों ने चौंक कर सिमरन का मुंह देखा |

-अच्छा !

टीचर उत्सुक हुयी |

- चार साल पहले देखा था मैंने टीचर |

कक्षा के छात्र हंस पड़े |

-हंसना गलत बात ... सब सुनो |

टीचर ने डांटा |

-टीचर मेरे घर के सामने एक बड़ा सा मैदान है | रात में मैंने देखा था एक चमकदार गोल चीज मैदान में उतरते हुये | जैसे ही वो नीचे आयी थी पूरे शहर की लाईट चली गयी थी | और फिर सुनायी दिया था कि एक बच्चा गुम गया है |

और श्रुति टीचर को याद आया  कुछ साल पहले उसने भी सूनी थी ऐसी ही घटना |


पता नहीं वह घटना अफवाह थी या सच |

Wednesday, June 24, 2015

पार्क में रोशनी

25 June 2015
10:59


-इंदु बाला सिंह

-अरे ! माँ देखो आज हमारे पार्क में फ्लड लाईट लग गयी है | कितनी रोशनी है | पढ़ने जाऊं पार्क में |

-क्यों तुम्हारे घर में रोशनी नहीं है |

-वहां कितना शांति है | यहां तो टी० वी० सीरियल डिस्टर्ब कर रहा है |

-ओ०  के० | मैं टी० वी० बंद कर देती हूं |

-पर वहां पढ़ने से बिजली का बिल भी बचेगा न | - मुन्ना ने आख़िरी वार किया |

-ओ०  के० | मैं पूरे घर में जीरो नाईट बल्ब ऑन कर देती हूं | अब तो बिजली का बिल बचेगा न | - मुन्ने की पार्क में घूमने जाने की मंशा समझ चुकी थी माँ |

मुन्ना का यह तीर भी खाली चला गया |

और वह चुपचाप टेबल के सामने से दिखती फ्लड लाईट और रंगीन फौव्वारे को देखने लगा |

Sunday, June 14, 2015

TEACHER / STUDENTS -4 ....कान उमेठ कर निकाल दूंगी


29 January 2015
07:12

-इंदु बाला सिंह 

टीचर -   जल्दी जल्दी होमवर्क कर | घर से कर के नहीं लाया है | जल्दी जल्दी होमवर्क कर नहीं तो           कान  उमेठ कर निकाल दूंगी और तेर हाथ में पकड़ा दूंगी | जल्दी जल्दी हाथ चला |


चौथी कक्षा के छात्र रमेश की बायीं हथेली धीरे से अपना कान छू ली और हाथ की पेन्सिल कापी पर जल्दी जल्दी चलने लगी |

Tuesday, May 26, 2015

TEACHER / STUDENTS -3 खाने में हो सदा मनपसन्द सब्जी




26 May 2015
15:31


-इंदु बाला सिंह 
  1. टीचर ! मेरी मम्मी  को खाना बनाना नहीं आता |

  2. क्यों ?

  3. वो कभी बैंगन की सब्जी बनाती है तो कभी साग | कल कुंदरू बनायी थी और मुझे अपने हाथ से खिला रही थी |

  4. मैं तो वही सब्जी खरीद कर ले जाती हूं घर जो मुझे पसंद हो | कभी कभी अपनी मम्मी की पसंद की सब्जी ले जाती हूं पर उस दिन मेरे पसंद की सब्जी जरूर बनती है |

  5. मैं भी कल से अपने घर की सब्जी खुद खरीद कर ले जाउंगी |


  6. हंस पड़ी अध्यापिका |

Monday, May 25, 2015

आज युवा समझदार हैं ( लघु लेख )


25 May 2015
21:02

-इंदु बाला सिंह

कौन कहता है आज के युवा अधीर होते हैं | अपने कालेज की क्लासमेट हो या जूनियर अगर वे दोस्त हैं तो आठ नौ  साल तक  अपनी अपनी कम्पनी में नौकरी करने के बाद अपना घर बसाते हैं | उनकी दोस्ती या कहिये प्रेम समझदारी से भरा होता है न कि जूनून से |
अलग अलग शहरों में काम करनेवाले मध्यम वर्ग के ये युवा पति पत्नी समझदारी के प्रतीक होते हैं |
अपने हाथों अपना जीवन स्तर सुधारनेवाले ये युवा हमारे देश की कीमती धरोहर हैं |

अब लैला मजनू की कहानियां अजूबी हैं |

Friday, April 24, 2015

पेड़ से लटकते किसान ( लघु लेख )


25 April 2015
06:27


-इंदु बाला सिंह


पेड़ से झूलते  किसान की खबर तोड़ देती है मन |

कहीं कहीं तो किसान का पूर्ण छोटा परिवार ही लटक जाता है पेड़ से और मन डूबने लगता है  |

मौसम की मार तो किसान सदा झेलता रहा है |

वर्षों पहले गांवों में लोग एक ही बखरी में रहते थे पर उनके चूल्हे अलग थे | एक ही बखरी में रहने से परिवार के सदस्य सुरक्षित तो रहते थे और एक दुसरे का मन भी ताक झाँक लेते थे | घर की महिलायें आपस में सुख दुःख बांटती थी वहीं एक दूसरे को ताना भी मारती थीं | गांव की खट्टी मीठी जिन्दगी अनुभवों से परिपूर्ण थी |

फसल खराब होने पर लोग परिवार छोड़ कर शहर चले जाते थे रिश्तेदारों के घर |

कुछ ऐसे भी छोटे किसान रहते थे जिस घर का एक भाई गांव में ही रह कर  खेती करता था और पास के शहर में जा कर काम भी करता था | सयुंक्त परिवारवाले  किसान पेड़ से लटकते नहीं थे | फसल खराब हुयी खरीद कर खाते थे मंहगा अनाज | आंधी में कच्चे घर की खपरैल छत  उड़ गयी दीवाल ढह गयी तो परेशानी होती थी पर गांव का हर व्यक्ति एक दुसरे के घर मजदूर की तरह खटता था |

आज छोटे परिवार अलग मकान में रहनेवाले लोग अपना दुःख किससे  कहे परिवार का मुखिया  | छोटे परिवार में किसी रिश्तेदार के लिये जगह नहीं | माता पिता भी तो किसी एक औलाद के पास ही रहेंगे |

किसान मित्रगण के न पूरे होनेवाले आश्वासन और रिश्तेदारों की अवहेलना से टूट कर अपने जीवन  का अंत कर लेना पसंद करता है |

Tuesday, April 21, 2015

नया घर


22 April 2015
10:14


-इंदु बाला सिंह
तिलक के रूपये न दे पाने के कारण कहीं पिता ने आत्महत्या कर ली तो कहीं दुल्हन ने , किसी घर से  बरात लौट गयी |

खबरें सुन सुन दुखी हो जाता है मन |

न जाने किसका दोष है पर यह तो निर्विवाद सत्य है कि बेटे के जन्म पर लोग खुश व  निश्चिन्त होते हैं |

बेटे के ब्याह में कुछ धन आयेगा ही |

और यह भी सत्य है कि कम से कम रुपयों में बेटी का ब्याह करना चाहता है पिता |

आज भी हम उधार मांग कर बेटी का ब्याह करते हैं | जमीन बेच कर धन लेने की अपेक्षा उधार मांगना बेहतर रहता है | चुका देंगे भविष्य में यह सोंच हम निश्चिन्त रहते हैं |

कम से कम उत्तरी भारत में लड़की को पैतृक सम्पत्ति हिस्सा न ही देने का चलन है भले ही वह कानूनन हकदार होती है |

नम्र बने लड़के के पिता व लड़का जहां आजीवन बहु को उसको  मैके से दूर रखना चाहता है वहीं लड़की का कन्यादान कर  पिता व भाई चाहते हैं लड़की खुश रहे अपने घर में |

शायद लड़की का घर ही वह  बिंदु है जहां लड़की को कील चुभाई जाती है |

लड़की पिता की दुलारी ससुराल की गृहलक्ष्मी सब कुछ है |

निर्भरता सदा ही अभिशाप रही है |

तो क्या पढ़ी लिखी कमाऊ लड़की का ब्याह  भी  आज सदा की तरह ही चिंता का विषय है ?

हम सहिष्णुता खो रहे हैं |


यह कैसी नींव  नये संसार की यों कहिये  नये घर की जहां भय , त्याग , असहिष्णुता , ताने के कंक्रीट , सीमेंट और बालू से दीवारें बनी हैं और झूठी मुस्कान का डिस्टेम्पर लगा है |

Sunday, April 19, 2015

दुपट्टा न भाये


20 April 2015
09:29

-इंदु बाला सिंह

दुपट्टा हुआ गायब कामवाली की बेटी हो बड़े घर की बेटी |

आखिर लड़की को फैशन जरूरी है न |

अभी फैशन न करेगी माडर्न नहीं दिखेगी क्या न जाने कैसी ससुराल मिले |

जाड़े में बिना दुपट्टे के स्कूल आने वाली नयी शिक्षिका गर्मी के मौसम में भी आ गयी स्कूल |

छात्र मस्त थे लडकियां खुश थी | रेसेस में क्या बढ़िया मुद्दा था दुपट्टा विद्यार्थियों में |

' टीचर पिन लगा कर दुपट्टा ओढ़ें | हमारा स्कूल बारहवीं कक्षा तक का को-एड स्कूल है | ' एक दिन मीटिंग में प्रधानाध्यापक ने अन्य विषयों पर डिस्कसन के बाद कह दिया गया |

पुरुष शिक्षक निर्विकार रहे | कुछ महिला शिक्षिकाओं ने किनखियों से एक दुसरे को देखा |


Thursday, April 16, 2015

इंटरव्यू की करामात


17 April 2015
08:05

-इंदु बाला सिंह

नया नया शुरू हुआ था राउरकेला स्टील प्लांट | कितनी सारी वैकेंसी निकली थी |
अप्लाई किया था मोहनदास ने बुक बाईनडर के पोस्ट के लिये |
इन्टरव्यू में बैठे गणमान्य ने उसका रिज्यूम देख कर रख लिया उसे टीचर पोस्ट पर |
और प्रोमोशन पा कर रिटायर हुआ मोहनदास एजुकेशन आफिसर के पोस्ट पर पहुंच कर |

Wednesday, April 15, 2015

आम का पेड़ और प्रिया ( लोक कथायें )

     
15 April 2015
19:58

-इंदु बाला सिंह


प्रिया नाम की एक छोटी सी लड़की थी | उसके पिता नहीं थे | वह अपने नाना के घर रहती थी | उसके नाना का बड़ा सा मकान था शहर में और उस मकान के पीछे खाली जमीन थी |

प्रिया के नाना ने उस जमीन पर एक कलमी आम का पेड़ लगा दिया था | उस आम के नीचे बैठ कर प्रिया पढ़ती थी , खेलती थी , झूला झूलती थी |

आम का पेड़ प्रिया के जीवन का अभिन्न अंग था , यों कहिये वह आम का पेड़ प्रिया का मित्र था |

गर्मियों में वह पेड़  अपना खट्टा और मीठा फल खिलाता था | गर्मी की दोपहर में मुहल्ले के बच्चे मकान की चाहरदीवारी फांद कर आते थे और आम तोड़ कर ले जाते थे | चूंकि वह कलमी आम का पेड़ था तो वह छोटा था और फल भी नीचे ही लटके रहते थे | सभी छोटे बच्चे बड़े आराम से उस पेड़ का फल तोड़ कर ले जाते थे |

एक गर्मी के इतवार को अपनी चटायी पर लेट कर प्रिया एक कहानी की किताब पढ़ रही थी तभी उसे लगा आम का पेड़ उससे कुछ बोल रहा है .....

' प्रिया ! तुम चली जाओगी अपने घर और मैं बूढ़ा हो कर मर जाऊंगा लोग मुझे ले जा कर बेच देंगे बाजार में | मेरा बीज भी तो लोग कूड़े में डाल देते हैं | मेरी संतानें भी नहीं रहेंगी | '

प्रिया चौंक गयी | वह सोंची पेड़ कैसे बात कर सकता है | यह तो सच है मौसी अपनी शादी के बाद चली गयी वह तो आती ही नहीं है | मुझे भी इस घर से नाना नानी जरूर निकाल देंगे | मामा तो रहता है इस घर में |

आम का पेड़ सही कह रहा है |

प्रिय ने सोंचा अगर वह इस पेड़ के पके आम को खा कर उसका बीज पानी से दो कर सुखा कर रख ले तो जरूर ऐसा ही आम का पेड़ लग सकता है  | यह आम अपने ही छोटे बच्चों में जीवित रहेगा |
पर बीज कहां लगायेगी वह परेशान हुयी प्रिया |

प्रिया को अपनी माँ  द्वारा सुनायी कहानी याद आयी जिसमें एक बूढ़ा ट्रेन से बीज फेंका करता था इस आशा में कि पेड़ लगेगा और धरती हरी होगी |

प्रिया ने सोंचा वह भी ट्रेन से या साईकिल से जहां से गुजरेगी वहां एक एक आम की गुठली फेंक दिया करेगी | कोई न कोई गुठली पेड़ बनेगी | हो सकता है ढेर सारे पेड़ लग जायें |

और प्रिया तब से अपने खाये आम की गुठली जमा करने लगी और हर साल बरसात के मौसम में  जहां भी जाती है अपने साथ बैग में आम की गुठली ले कर जाती है |

अब प्रिया खुश है |

वह सोंचती है जैसे वह हर साल बड़ी हो रही है वैसे ही  उसके साथ साथ आम के पौधे भी बड़े हो रहे होंगे कहीं न कहीं |

प्रिया की बांतें सुन कर उसकी माँ हंसती है |



Wednesday, April 8, 2015

छात्रों की मारपीट


08 April 2015
17:12

-इंदु बाला सिंह


' टीचर ! देखिये रवीश कितना मारा है मुझे | अपने सातों दोस्त के साथ मिल कर मारा है | '

बारहवीं कक्षा का छात्र जय खड़ा था मिस बराल के सामने | गले में दोनों तरफ खरोंच के निशान , बायीं आंख सूजी हुयी लाल थी | शायद मुंह पर जोरदार घूंसा पड़ा था |

' क्यों मारा ? '

मिस बराल परेशान थी | पूरे कैम्पस , कक्षा और बरामदे में कैमरा लग जाने के कारण बच्चे स्कूल गेट के बाहर निकल कर मारपीट करते थे |

' मिस ! बोलता है मैंने उसकी शर्ट पर लिख दिया है | पूछिये पूरी कक्षा से - मैंने नहीं लिखा है | '

' ठीक है तुम तो स्कूटी से आये हो न | मेरे  साठ ही निकलो कल बुलाओंगी रवीश के पेरेंट को | '


और मिस बराल और जय दोनों एकसाथ निकल गये स्कूल गेट से |

Tuesday, April 7, 2015

फटा नोट


08 April 2015
06:25


-इंदु बाला सिंह


' आपके फूल के पेड़ के पास सौ का नोट चिंदी चिंदी कर के कौन फेंका है ? ' एक पुरानी कामवाली  गपियाने आयी थी दादी के पास |

' मैं फेंकी | वो नोट फटा वाला था न | पता नहीं कौन दिया था मुझे | '

' हंय आप नोट फाड़ के फेंक दीं | '

' बेटा बोलता - ' कहां से फटा नोट लायी | ' फाड़ के फेंक देना अच्छा है न | वैसे पड़ोसन बोली थी बैंक में देने से बदल जायेगा | '

' वो तो है | भैय्या से डर भी तो लगता है | ' कामवाली ने सहानुभूति प्रकट की |



Monday, February 9, 2015

राह में छेड़खानी


09 February 2015
22:57
-इंदु बाला सिंह


-मिस ! आज टर्निंग पर एक लड़का खड़ा था ...बोल रहा था ..आ जा तुझे लिफ्ट दे दूंगा |

-मिस ! मैं आ रही थी तो मुझे भी एक लड़का मिला था ...बोल रहा था ...मेरी स्कूटी पर बैठ जा |

 -' मिस ! मुझे तो दिखाई ही कम देता है ...मुझे चश्मा खरीदना है ... मुझे भी बोला होगा ... मुझे सुनायी ही नहीं दिया होगा | ' डरी डरी सहमी आवाज में तीसरी लड़की ने कहा |

कमरे में घुसते ही एक एक कर छात्राओं ने  घबरा कर सड़क पर का आज का अनुभव कहा |

आठवीं कक्षा के दस छात्र व छात्रायें टीचर सुरभि के पास गणित पढ़ने आते थे |

और सुरभि  एक पल घबरा कर  सोंचने लगी कि कमरे में पढ़ने बैठे छात्र क्या सोंच रहे होंगे |

सभी छात्र चुपचाप गणित के अपने अपने प्रश्न हल कर  रहे थे |

एक पल को सुरभि को वह बदमाश याद आ गया जो सुबह सुबह सड़क पर फट से एकाएक उसके सामने  अपनी लूंगी खोल दिया था और वह हकबका गयी थी |

-' अरे ! तुमको कोई लड़का कैसे छेड़ दिया ? मैं तो लड़कों को छेड़ती हूं | " इस छात्रा के पिता दबंग व्यक्ति थे कोई |

-' देखो डरना नहीं कभी रास्ते में कोई छेड़े तो | बोलना अभी लगाती हूं मैं पुलिस थाने में नम्बर और अपना मोबाइल फट से क्लिक करना | ' सुरभि ने समझाया |

-अरे मिस ! एक बार तो हम दो लडकियां जा रहे थे तो एक लड़का स्कूटी मेरे बगल में धीरे कर के कुछ बोलने लगा तो मैंने ऊंची आवाज में अपनी फ्रेंड से कहा - लगा तो भैय्या को फोन ..और वो लड़का भाग गया तेजी से अपनी स्कूटी चला के |

दुसरे दिन किसी छात्रा के कान में  मोबाइल का तार था तो किसी की मां अपनी स्कूटी से ट्यूशन छोड़ने आयी थी |


सभी छात्राओं ने  अपने अपने तरीके से समाधान निकाल लिया था |