Monday, December 29, 2014

गैस का मूल्य ज्यादा देना पड़ेगा


30 December 2014
09:23
-इंदु बाला सिंह

' हां हां ...हम सब समझते हैं ....गैस को बैंक से लिंक कर रहे हैं .....हम खान से लायेंगे इतना रुपया ..अरे एक बार तो देना पड़ेगा रुपया ....और ..अब लाये हैं जन धन योजना बी० पी० एल० कार्ड वालों के लिये ...' बैंक में भाषण मारने लगी एक मजदूरनी .....' मुझे बना दें मंत्री मैं सब ठीक कर दूंगी ... '

बैंक में पैसा जमा करने आयी उस मजदूरनी की साथिन उसे चुप कराने लगीं |


इतना आक्रोश ! आखिर कोई जरूर उसे ये बातें अपने भाषण में सुनाया होगा तभी इतनी बड़ी बात कह  गयी मजदूरनी |

बहु के हाथ का खाना


29 December 2014
22:34
-इंदु बाला सिंह

' इतने साल बाद बहु आयी है विदेश से | आज शाम को आप अपनी बहु के हाथ का खाना खाईये | मेरे हाथ का खाना तो आप रोज खाती हैं | ' कामवाली ने सासू माँ से कहा |


शाम को बहु के सर में दर्द था इसलिये सासू माँ को कामवाली के हाथ का ही पकाया खाना पड़ा |

Sunday, December 28, 2014

सड़क सफाई !


29 December 2014
08:14
-इंदु बाला सिंह

' अरे कहां चलीं सुबह !  सुबह ! '

' कहा तो था परसों सोमवार को स्वच्छ भारत अभियान में जाना है | '

पति महोदय फिर से अखबार पढ़ने लगे | नौ बज चुके थे इसलिये अखबार आ चूका था | वैसे वे आफिस के लिये पूरी तरह से सूटेड बूटेड थे | दरवाजा खोल बंद की चिंता न थी क्यों कि दोनों के पास डुप्लीकेट चाभी थी |
कांजीवरम सड़ी में वे नहा धो कर चमक रहीं थीं |
फोटो भी तो खिंचेगी | अखबार में छपेगी |
चौक पर मिसेज शर्मा ने अपने नौकर को दस झाड़ू के साथ आठ बजे से ही खड़े रहने को कहा था |

कार स्टार्ट हुयी पत्नी महोदया जा चुकीं थीं |

Thursday, December 18, 2014

स्कूल में क्यों मारे बच्चों को ?


18 December 2014
20:28
-इंदु बाला सिंह


' टीचर ! पेशावर में स्कूल में बच्चों को क्यों मारे ? ' छठी कक्षा की रेशमा ने सकूल के रेसेस में पूछा मिस देशपांडे  से |

' पता नहीं | मैं टी० वी० देखती नहीं | ' मिसेज देशपांडे ने बात टाली | अब बच्चों से क्या बोलती वो |

' टीचर ! मेरी माँ कहती है कि वो लोग चाहते थे बच्चे न पढ़ें | मलाला कहती है पढ़ने को | और बच्चे पढ़ना चाहते थे | इसीलिये वे लोग मारे | ' रेशमा ने टीचर को जानकारी दी |


टीचर ने चैन की सांस ली | बच्ची की जिज्ञासा शांत हो चुकी थी |

Friday, December 12, 2014

गणित समझ ही नहीं आता टीचर


12 December 2014
14:58

-इंदु बाला सिंह


' कितना बोल रही हूं तुमको समझ नहीं आ रहा है |...इधर मैं ब्लैकबोर्ड पर प्रश्न हल कर के समझा रही हूं उधर तुम खाली बात करते जा रहे हो .... तुम सोंचते हो मुझे पता नहीं चलता है ...हां ..हां ...तुम नीलेश ... निकलो क्लास से बाहर ... ' सुलभा ब्लैकबोर्ड पर गणित हल करना बंद कर के चीखी |

पूरी कक्षा चुप | नीलेश अपनी स्थान से टस से मस न हुआ |

सुलभा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया |

' तुम निकलते हो कि आऊं मैं ! '

धमकी सुन कर नीलेश तनतना कर उठा और कक्षा के बाहर जा कर धड़ से कक्षा का दरवाजा बंद कर के कुंडा लगा दिया | कुढ़ गयी सुलभा पर अनसुनी व अनदेखी कर ब्लैकबोर्ड पर गणित का हल करने लगी |

सिरदर्द था उसके लिये यह नवम क्लास | वैसे जब से पिटाई की मनाही हो गयी थी हर कक्षा के छात्र उदंड हो गये थे | स्कूल में घुसो तो छात्रों को अनुशासन में रखना और उन्हें पढ़ाना रोज का एक युद्ध ही था उसके लिये | केवल सुलभा ही नहीं हर शिक्षक इस समस्या से पीड़ित था |

प्रिंसिपल के पास गयी  नीता  ने   क्लास के  दरवाजे का कुंडा खोल कर ज्यों ही   कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति मांगी भन्नाती हुयी सुलभा बाहर निकली दरवाजे से -

' नीता ! अंदर जाओ तुम | ' आदेश दिया उसने और पलटी नीलेश की ओर-

' नीलेश ! तुमने दरवाजे का कुंडा लगा दिया था ! '

' नहीं टीचर | '

' झूठ बोलते हो ! '

' गणित में तो तुम दस से भी कम नम्बर लाते हो  तुम फिजिक्स में भी कम नम्बर लाते हो ..कैसे पास करोगे तुम !.... लगाऊं फोन तुम्हारे पापा को ! '

तीर काम कर गया |

डर गया नीलेश |

' अरे ! नहीं टीचर ...माफ़ कर दीजिये ...और कभी नहीं करूंगा .... क्या करूं टीचर ! गणित समझ में ही नहीं आता टीचर .... ' घिघियाने लगा नीलेश और सुलभा खूब समझ रही थे यह नौटंकी |

गणित हिस्ट्री तो था नहीं कि रट ले कोई और पास कर ले | निचली कक्षा में कमजोर तो बड़ी मेहनत करनी पड़ती है उपरी कक्षा में | फिर आजकल बच्चे , न तो शिक्षक से डरते हैं और न ही स्कूल के प्रिंसिपल से डरते हैं . वे खाली अपने पापा से डरते हैं | यह बात सुलभा अनुभव कर चुकी थी | आखिर स्कूल का फीस तो पापा ही  देते हैं न |


' अच्छा चलो क्लास में बैठो | ' सुलभा ने नीलेश  को आदेश दिया और वह जानती थी कल फिर कोई नई शैतानी करेगा यह लड़का |

Thursday, December 11, 2014

गैस कंज्यूमर कार्ड का बैंक से कनेक्शन


11 December 2014
15:40

-इंदु बाला सिंह



" जिसके पास आधार कार्ड है वो आधार का फार्म ले और जिसके पास आधार कार्ड नहीं है वह व्यक्ति बैंक वाला फार्म ले - साथ में गैस का फार्म भी मिलेगा | आपको गैस के कंज्यूमर  कार्ड का ज़ेरॉक्स और फार्म भर के बीस तारिख से पहले जमा करना है | "

आदेश था वितरक के काउंटर पर बैठी महिला का |

गैस वितरक के पास से एक व्यक्ति  केवल दो ही फार्म ले सकता था  |

डीलर  महोदय को तो ऐसे मौके पर इम्पोर्टेन्ट काम आ जाता  है , इसलिये उनकी कुर्सी खाली थी |

दूकान के सामने फार्म के लिये लम्बी लाईन लगी थी |

शुचिता कुढ़ कर फार्म के लिये लाईन में लगी थी | एक बार उसने इसी डीलर को अपना सारा फार्म तीन महीने पहले भर के जमा कर दिया था | वितरक द्वारा फार्म प्रप्ति की साईन की हुई रसीद भी उसके पास पड़ी थी | अब फिर से फार्म ले के भरना था उसे |

महिला और पुरुषों के लिये एक ही लाईन थी |

सब ग्राहक खफा थे |

-देखिये ! एक ही लाईन बनवाये हैं महिला और पुरुषों के लिये |

-अरे !........मेरा तो गैस बुकिंग ही नहीं हो पा रही है |

-अरे ! ...बड़ा झमेला है .. इसीलिए तो मैंने इन्डकशन चुल्हा ले लिया है |

-अरे ! ....एक बार तो ले चुके हैं ये लोग फार्म ..फिर से ले रहे  हैं |

-मैं तो छुट्टी ले कर आया हूं फार्म लेने ..मेरा तो जनरल शिफ्ट है न |

-मेरी तो नाईट शिफ्ट थी ..नींद गयी आज की मेरी |

-क्या झमेला है ...अरे ये काउंटर पर बैठी इतनी खचडी हैं कि क्या बताऊं ...बात करने की तमीज नहीं हैं इनके पास ....कोई मर्द होता काउंटर पर तो उठा के पटक देते अभी |

-अब देखिये उसे लौटा दिया ..बोल रही है पासबुक का भी जेराक्स लाओ ... अच्छा दबंगई है ...आगे ही बोलना था न |

-अरे ! ....लिख कर नोटिस में लगाना चाहिये था न |

आधा घंटे लाईन लगाने के बाद शुचिता को गैस के डीलर से फार्म मिला और जमा करते समय दुबारा झेली जानेवाली कठिनाई का अनुभव |

दुसरे दिन जब शुचिता पहुंची गैस वितरक के दूकान तो उसने चिपका देखा एक बड़ा सा नोटिस --" दूकान बंद है आज " |


अब तीसरे दिन भी छुट्टी लेनी पड़ेगी आफिस से शुचिता ने सोंचा |