07
October 2014
12:07
-इंदु बाला
सिंह
' मेरा बेटा
दिल्ली गया है ....कालेज के सर ले गये हैं उसे ....अपने पैसे से ले गये हैं वे | '
चाय में रोटी डुबोते हुये कामवाली ने गर्व से कहा |
' मेरे बेटे
को तो आफिस के काम से फुर्सत ही नहीं मिलती ..... बड़ा अफसर है न | ....... अरे !
मर्दों को तो सैकड़ों काम रहते हैं | हमारी तरह वे घर में थोड़े न बैठते हैं | '
मालकिन ने अपने बायें कान के झुमका सीधा करते हुये कहा |
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