Monday, August 25, 2014

निश्छल निष्कर्ष


13 August 2014
20:19
-इंदु बाला सिंह

" मैं नहीं जाउंगी बाबा उसके घर काम करने | उसका औरत मैके गयी है | उसकी औरत बड़ी खचड़ी है | बोलेगी मैं नहीं थी तो मेरे घर में आती थी काम करने | मानती हूं उसका आदमी सही है पर वो कुह्ह कुछ बोल देगी पड़ोस में और मेरा आदमी सुनेगा तो काट डालेगा मुझे | वैसे ही हरदम छोटी छोटी बात पे लड़ता है मुझसे और कभी कभी तो हाथ भी चला देता है मुझपे | कितना पीता है वो कि मैं क्या बताऊँ | मेरा बेटा बेटी दोनों देखते हैं यह सब | .... ना  बाबा ना मैं न जाउंगी उसके घर | अभी सबेरे सबेरे मुझे बुलाया बोला कि मैं उसके घर में झाड़ू पोछा कर दूं | " कामवाली जमीन पे बैठ के नाश्ता कर रही थी  और चाय की चुस्की के साथ अपने मन की भड़ास भी निकाल रही थी |

" और क्या ... हम जब कानपुर में थे हमारे बगल में एक पड़ोसी थे | उनकी पत्नी किसी काम से मेरे घर आयी थी | लौट कर अपने आदमी को कामवाली के साथ देख ली |.. इतना डांटी मेरी पड़ोसन अपने आदमी को कि पांच दिन तक घर ही न आया | " सासू माँ  ने भी कामवाली की बातों  के रस को द्विगुणित करते हुये कहा |

" अरे माँ जी ! ... वो कामवाली बदमाश थी होगी | वो हल्ला नहीं की | " कामवाली ने अपना निर्णय दिया |


और मैं ड्राइंग रूम में बैठ के अख़बार पढ़ते पढ़ते सुन रही थी उपरोक्त वार्तालाप और कामवाली के निश्छल निष्कर्ष ने मुझे चकित कर दिया |

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