Thursday, July 17, 2014

मेरी परेशानी उर्फ़ कस्टमर की परेशानी


04 July 2014
06:59



हमारे घर के उपर में ' जीवन ' बैंक का कर्मचारी रहता है | महोदय ने घर के में गेट में एक दूसरा ताला लगा दिया था | अब सुबह सुबह बिटिया के आफिस जाते समय जब ताला खोलने चली तो देखी सदा लगायेजानेवाला ताला दुसरे हुक में लटका है और गेट में एक दूसरा ताला लगा है |

मैंने एक अपने एक भाड़ेदार का दरवाजा खटखटाया ... ' आपने गेट का ताला बदल दिया है ? "

" नहीं तो ! " उत्तर मिला |

फिर मैं उस ' जीवन ' बैंक के कर्मचारी को रिग करते हुये सीढियां चढ़ने लगी |

दूसरी तरफ से किसी ने फोन उठाया |

" मिस्टर मोहन "

उधर से कोई कुछ बोला |

मैं अपने धुन में थी |

" आपने गेट में ताला बदल दिया है | "

उधर से कोई कुछ बोला |

आप बाहर आईये |

मैंने फोन काट दिया |

मुझे लगा मैंने गलत नम्बर रिंग किया था |

मैंने फिर रिंग किया |

किसी ने उठाया |

अब तक मैं दरवाजे तक पहुंच गयी थी |

दरवाजा भड़भड़ाने  लगी |

" मोहन ! मोहन ! "

दरवाजा भड़ाक से खुला |

मोहन निकला |

" अरे भई ! आपने ताला बदल दिया है ? देरी हो रही है मुझे ! "

मोहन नीचे झांका |

" ओहो ! असल में भाई ने गलत ताला लगा दिया है | "

गेट का ताला एक लटका है वहीं और नया ताला लग गया यह राज तो भई वो कर्मचारी ही जाने |

मोहन ने तत्परता से खुद ताला खोला |

" आपके नम्बर पर कौन उठा रहा है फोन ? " मैंने पूछा |

" असल में न वो नम्बर किसी और को मिल गया है | मेरा प्रोफाइल बैंक में चेंज हो गया है न | मैं आपको अपना नया नम्बर देता हूं | "

बात कर ही रही थी तबतक डायलड नम्बर से काल बैक आया |

" आपको मोहन का नम्बर चाहिए ! "

" आप कौन बोल रहे हैं ? " मैंने पूछा |

" मैं ' जीवन ' बैंक में ही काम करता हूं | आपको मोहन का नम्बर चाहिए ? "

" ओह ! नो थैंक्स | मोहन जी इस समय मेरे पास ही खड़े  हैं | " और मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया |

फोन पर हो रहे अपने बैंक के कर्मचारी का वार्तालाप मोहन खड़ा खड़ा सुन रहा था फिर वह अपना ताला ले कर उपर चला गया |


 मैंने सोंचा कस्टमर भी तो परेशान होते होंगे जब परिचित चेहरा फोन पर न पाते होंगे | कस्टमर को व्यक्ति पर ज्यादा विश्वास होता है |

' जीवन ' बैंक में बैंक सर्वोपरि होता है कर्मचारी नहीं |



No comments:

Post a Comment