18 July
2014
09:32
-इंदु बाला
सिंह
एक
गाँव में ब्रम्ह्दत्त नामक ब्राम्हण रहता
था |
एक बार उसे
किसी काम से गांव से बाहर जाना पड़ा |
" माँ
अपना ख्याल रखना | मैं चार दिन में वापस आ जाऊँगा | " कह कर ब्रम्ह्दत्त अपना सामान ट्रंक में रखने लगा |
माँ परेशान हो
गयी | बेटा अकेला ही जा रहा था परदेश |
" बेटा
तू अकेला ही जा रहा है परदेश | अपने साथ किसी को लेता जा | "
" माँ तू
चिंता न कर | रास्ता मेरा पहचाना हुआ है | "
माँ चिंतित हो
मन्दिर गयी | इश्वर को माथा नवा कर जब वह मन्दिर से निकली उसने देखा उसके गर
पहुँचाने तक पूरा रास्ता उसके आगे एक केकड़ा चल रहा है |
घर के दरवाजे
पर पहुंच कर माँ ने उस केकड़े को उठा लिया और अपने बेटे से कहा कि वह इस केकड़े को
अपने ट्रंक में रख ले |
बेटा परेशान
हो गया |
माँ तुम भी न
... मैं ब्राम्हण हूं | मैंने अपने ट्रंक में पुराण रखा है | मैं आमिष हूं | इस
केकड़े को मैं कैसे अपने साथ रख सकता हूं | फिर यह छोटा सा जीव मेरी क्या सहायता
करेगा | "
माँ अड़ गयी |
मन्दिर से निकलने पर यह केकड़ा मेरे साथ मेरे घर तक आया है | एक प्रकार से इसने
मेरी रखवाली की है | ये केकड़ा जरूर तेरी भी रखवाली करेगा | "
ब्रम्ह्दत्त
माँ की जिद के आगे झुक गया | उसने एक थैली में केकड़ा रख लिया और गाँव से निकल पड़ा
|
राह में जब
दोपहर हुयी तब एक पेड़ की छाँव में लेट कर ब्रम्ह्दत्त सुस्ताने लगा | थका रहने के कारण थोड़ी ही देर में आँख लग गयी |
ब्रम्ह्दत्त
जिस पेड़ के नीचे सोया था उसी पेड़ के नीचे एक सांप का बिल था | सांप आमिष की गंध पा
अपने बिल से बाहर निकला |
केकड़े ने सांप
की उपस्थिति महसूस की और वह अपने थैले से बाहर निकल आया |
केकड़ा समझ गया
कि सांप जरूर उसके साथी पुरुष को काटेगा | उसने
तेजी से सांप की गर्दन पकड़ ली |
सांप ऐंठने लगा तड़पने लगा पर केकड़े ने उसकी गर्दन न छोड़ी | आखिर सांप दो टुकड़े हो
गया और जमीन खून से सं गयी |
केकड़ा मरे
सांप के पास बैठा रहा और अपने पुरुष साथी की रखवाली करता रहा | केकड़े को भय था कि
कहीं दूसरा सांप न आ जाय |
ब्रम्हादत्त
की नींद खुली तब वह सामने का दृश्य देख कर चौंक गया | पल भर में उसे सारी बात समझ
में आ गयी | उसने मन ही मन माँ को धन्यवाद दिया |
साथी केकड़ा को
उठा कर ब्रम्हद्त्त ने थैली में रख लिया और आगे चल पड़ा |
No comments:
Post a Comment