Saturday, July 26, 2014

साधू और सांप


26 July 2014
22:19
एक  बार एक साधू के पास एक  सांप पहुंचा और उन्हें नमस्कार किया |

साधू ने सांप को समझाया कि उसे मनुष्य को काटना छोड़ देना चाहिए |

सांप ने साधू की बात मान ली |

अब सांप शांत हो खाली रेंग कर आता जाता था और गाँव के बह्चे उसे देखते ही पत्थर मरते थे |

एक दिन साधू ने यह दृश्य देखा | वह बड़ा दुखी हुआ |

उसने सांप को समझाया कि वह फुंफकार कर लोगों को डरा तो सकता ही है | लोग डर कर उससे दूर भाग जायेंगे |

लोग उससे डरेंगे नहीं तो मारेंगे ही पत्थर |

सांप ने साधू की बात मान ली |


तब से सांप हमें फुफकार कर डराता है और हम उससे डर कर दूर भाग जाते हैं |

Thursday, July 24, 2014

बेटे की माँ


24 July 2014
20:42
....आपके बेटे ने कहा मुझे - " मैं तुझे मार कर तेरी लाश भी गायब करवा दूंगा | मैं जान बचा कर आ गयी | "

रात के अंधेरे में सड़क पर से  सलवार कमीज में एक पतली लम्बी और दुसरी नाटी स्त्री काया पर मेरी नजर पड़ी |

बिजली गुल थी पर मुझे दिखा कि लम्बी लड़की कान से मोबाईल लगा कर बोल रही है |

पल भर में एक स्कूटी गुजरी | दोनों लडकियों का चेहरा रोशनी से नहा उठा |

लम्बी लड़की कम उम्र की गोरी चिट्टी सी थी और नाटी काली सी कामवाली थी |

प्राय: आदिवासी काले होते हैं और अपनी बेटियों को बड़े घरों में बंधा काम करने भेजते हैं | लडकियां इन घरों  में सुरक्षित रहती हैं |

मैं आगे निकल गयी पर उस लड़की के वाक्य ने मुझे विचलित कर दिया |

वह कौन थी मुझे नहीं मालूम पर एक स्वाभिमानी बेटी जरूर थी |

निसंदेह वह लड़की अपनी उस ससुराल और कभी नहीं जायेगी | 

Saturday, July 19, 2014

छोटा पथ प्रदर्शक ( लोक कथा )


18 July 2014
09:32
-इंदु बाला सिंह

एक गाँव में ब्रम्ह्दत्त नामक  ब्राम्हण रहता था |

एक बार उसे किसी काम से गांव से बाहर जाना पड़ा |

" माँ अपना ख्याल रखना | मैं चार दिन में वापस आ जाऊँगा | " कह कर ब्रम्ह्दत्त  अपना सामान ट्रंक में रखने लगा |

माँ परेशान हो गयी | बेटा अकेला ही जा रहा था परदेश |

" बेटा तू अकेला ही जा रहा है परदेश | अपने साथ किसी को लेता जा | "

" माँ तू चिंता न कर | रास्ता मेरा पहचाना हुआ है | "

माँ चिंतित हो मन्दिर गयी | इश्वर को माथा नवा कर जब वह मन्दिर से निकली उसने देखा उसके गर पहुँचाने तक पूरा रास्ता उसके आगे एक केकड़ा चल रहा है |

घर के दरवाजे पर पहुंच कर माँ ने उस केकड़े को उठा लिया और अपने बेटे से कहा कि वह इस केकड़े को अपने ट्रंक में रख ले |

बेटा परेशान हो गया |

माँ तुम भी न ... मैं ब्राम्हण हूं | मैंने अपने ट्रंक में पुराण रखा है | मैं आमिष हूं | इस केकड़े को मैं कैसे अपने साथ रख सकता हूं | फिर यह छोटा सा जीव मेरी क्या सहायता करेगा | "

माँ अड़ गयी | मन्दिर से निकलने पर यह केकड़ा मेरे साथ मेरे घर तक आया है | एक प्रकार से इसने मेरी रखवाली की है | ये केकड़ा जरूर तेरी भी रखवाली करेगा | "

ब्रम्ह्दत्त माँ की जिद के आगे झुक गया | उसने एक थैली में केकड़ा रख लिया और गाँव से निकल पड़ा |

राह में जब दोपहर हुयी तब एक पेड़ की छाँव में लेट कर ब्रम्ह्दत्त सुस्ताने लगा |  थका रहने के कारण थोड़ी ही देर में आँख लग गयी |

ब्रम्ह्दत्त जिस पेड़ के नीचे सोया था उसी पेड़ के नीचे एक सांप का बिल था | सांप आमिष की गंध पा अपने बिल से बाहर निकला |

केकड़े ने सांप की उपस्थिति महसूस की और वह अपने थैले से बाहर निकल आया |

केकड़ा समझ गया कि सांप जरूर उसके साथी पुरुष को काटेगा | उसने  तेजी से सांप की गर्दन पकड़ ली  | सांप ऐंठने लगा तड़पने लगा पर केकड़े ने उसकी गर्दन न छोड़ी | आखिर सांप दो टुकड़े हो गया और जमीन खून से सं गयी |

केकड़ा मरे सांप के पास बैठा रहा और अपने पुरुष साथी की रखवाली करता रहा | केकड़े को भय था कि कहीं दूसरा सांप न आ जाय |

ब्रम्हादत्त की नींद खुली तब वह सामने का दृश्य देख कर चौंक गया | पल भर में उसे सारी बात समझ में आ गयी | उसने मन ही मन माँ को धन्यवाद दिया |


साथी केकड़ा को उठा कर ब्रम्हद्त्त ने थैली में रख लिया और आगे चल पड़ा |

Thursday, July 17, 2014

बहुएं गाँव में हैं


24 June 2014
09:26
-इंदु बाला सिंह

" अरे ! मिसेज शर्मा आप ! "

सड़क के किनारे बिकते कपड़ों के ढेर को उत्सुक आँखों से देखते हुए मिसेज गार्गी की आंख मिसेज शर्मा पे पड़ी |

दोनों महिलाएं फूटपाथ पर पैदल चलनेवालों का अवरोध बन गयीं |

" सुना है आपके दोनों बेटों का ब्याह हो गया है ? "

" हां जी !... " मुस्कुरा के मिसेज शर्मा बोली | " और मेरी दोनों बहुएं मेरे गाँव के मकान में ही रहती हैं | "

" अब ....मेरे बेटे तो इतना कमाते नहीं हैं न .... शहर में रह कर जो कुह्ह बेटे कमाते हैं सोंचिये वो उनका अपना पैसा है .....गाँव में तो बहुएं अधिया की खेती से खाती हैं ...वैसे मेरे गाँव के घर में मेरे ससुर , विधवा ननद भी रहते हैं | " मिसेज शर्मा बोल पड़ी |


मिसेज शर्मा जो न बोली वो मिसेज गार्गी उनके बिना बोले ही समझ गयीं  | आदमी दुसरे राज्य में कमाने जाता है बसने नहीं |

मेरी परेशानी उर्फ़ कस्टमर की परेशानी


04 July 2014
06:59



हमारे घर के उपर में ' जीवन ' बैंक का कर्मचारी रहता है | महोदय ने घर के में गेट में एक दूसरा ताला लगा दिया था | अब सुबह सुबह बिटिया के आफिस जाते समय जब ताला खोलने चली तो देखी सदा लगायेजानेवाला ताला दुसरे हुक में लटका है और गेट में एक दूसरा ताला लगा है |

मैंने एक अपने एक भाड़ेदार का दरवाजा खटखटाया ... ' आपने गेट का ताला बदल दिया है ? "

" नहीं तो ! " उत्तर मिला |

फिर मैं उस ' जीवन ' बैंक के कर्मचारी को रिग करते हुये सीढियां चढ़ने लगी |

दूसरी तरफ से किसी ने फोन उठाया |

" मिस्टर मोहन "

उधर से कोई कुछ बोला |

मैं अपने धुन में थी |

" आपने गेट में ताला बदल दिया है | "

उधर से कोई कुछ बोला |

आप बाहर आईये |

मैंने फोन काट दिया |

मुझे लगा मैंने गलत नम्बर रिंग किया था |

मैंने फिर रिंग किया |

किसी ने उठाया |

अब तक मैं दरवाजे तक पहुंच गयी थी |

दरवाजा भड़भड़ाने  लगी |

" मोहन ! मोहन ! "

दरवाजा भड़ाक से खुला |

मोहन निकला |

" अरे भई ! आपने ताला बदल दिया है ? देरी हो रही है मुझे ! "

मोहन नीचे झांका |

" ओहो ! असल में भाई ने गलत ताला लगा दिया है | "

गेट का ताला एक लटका है वहीं और नया ताला लग गया यह राज तो भई वो कर्मचारी ही जाने |

मोहन ने तत्परता से खुद ताला खोला |

" आपके नम्बर पर कौन उठा रहा है फोन ? " मैंने पूछा |

" असल में न वो नम्बर किसी और को मिल गया है | मेरा प्रोफाइल बैंक में चेंज हो गया है न | मैं आपको अपना नया नम्बर देता हूं | "

बात कर ही रही थी तबतक डायलड नम्बर से काल बैक आया |

" आपको मोहन का नम्बर चाहिए ! "

" आप कौन बोल रहे हैं ? " मैंने पूछा |

" मैं ' जीवन ' बैंक में ही काम करता हूं | आपको मोहन का नम्बर चाहिए ? "

" ओह ! नो थैंक्स | मोहन जी इस समय मेरे पास ही खड़े  हैं | " और मैंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया |

फोन पर हो रहे अपने बैंक के कर्मचारी का वार्तालाप मोहन खड़ा खड़ा सुन रहा था फिर वह अपना ताला ले कर उपर चला गया |


 मैंने सोंचा कस्टमर भी तो परेशान होते होंगे जब परिचित चेहरा फोन पर न पाते होंगे | कस्टमर को व्यक्ति पर ज्यादा विश्वास होता है |

' जीवन ' बैंक में बैंक सर्वोपरि होता है कर्मचारी नहीं |



दुबारा बी० एड०


10 July 2014
07:56
" कितना गंदा लिखते हो ! ....पढ़ना मुश्किल हो जाता है .....हैण्डराईटिंग सुधारो !.. "

" मैडम ! आपने क्या.... बी० एड० किया है ...आप बच्चों की हैण्डराईटिंग नहीं पढ़ सकतीं ? " चट से निकला उत्तर मनीष के मुंह से |

एक्स्ट्रा समय में बच्चे पढ़ रहे टीचर से |

" ये बच्चे न ....." मन ही मन सोंचा मिसेज शुक्ल़ा ने ...." अब कौन मुंह लगे इन दसवीं कक्षा के लडकों के मुंह | "

" मैंने दुबारा बी० एड० कर लिया ..." दुसरे दिन मिसेज शुक्ला ने मनीष को जवाब दिया |

चौंक पड़ा छात्र |

" कैसे मैडम ?... आपने एक दिन में दुबारा बी० एड० कर लिया ? "

" मैंने दुबारा पढ़ ली न कल रात बी० एड० की किताबें .."


छात्र पानी पानी हो गया |

शिक्षक की दुनिया


17 July 2014
20:12
" मेरे घर का भाड़ा मैं , मेरे पिता और मेरे भाई में तीनों मिल कर देते है | एक एक के हिस्से ढाई हजार पड़ता है | भाई भाभी यहाँ रहते तो नहीं हैं पर पर जब वे आते हैं तो उनके लिए एक कमरा चाहिए न | बिजली का बिल मेरे पिता देते हैं इंटरनेट का मैं | मेरी बिटिया के खाने का खर्च मैं देती हूं | अपनी बिटिया का स्कूल फीस , ट्यूशन फीस सब मैं देती हूं | मेरे पिता रिटायर्ड हैं न कितना खर्च उठाएंगे परिवार का | " तलाकशुदा अध्यापिका ने मुस्कुरा कर कापी चेक करना रोक कर सहज ढंग से अपनी तनख्वाह का हिसाब दे दिया |

मैं उसकी सहजता पर विस्मित थी और मुझे अपने घर में होने वाले  सास ससुर व पति के बीच प्रतिदिन होनेवाले शीत युद्ध की याद आया | 

उस अध्यापिका की मुस्कान मुझे ठंडी फुहार सी महसूस करा गयी |

मैं प्रत्युत्तर में मुस्कुरा दी |

मेरे सामने कापी का ढेर था चेक करने के लिये पर मेरा मन उखड़ चूका था कापी से |

मैं बस यूं ही कापी के पिछले पन्ने पलटने लगी और सोंचने लगी कहीं कोई पन्ना बिना चेक हुए ही छूट तो नहीं गया है |


प्राइवेट विद्यालय में सारे बच्चे फर्स्ट क्लास पास तो हो जाते हैं पर शिक्षक की तनख्वाह पांच से आठ हजार के बीच ही रहती है और इसी तनख्वाह में शिक्षक की इमानदार दुनिया बसती है |