"
अब क्या बताउं जी .... मेरी बिलकुल इच्छा नहीं थी बेटे को उच्च शिक्षा के लिए
विदेश भेजने की ....मेरा बेटा समझाने लगा मुझे ...माँ मैं दिल्ली रहूँ या अमेरिका
क्या फर्क पड़ता है ... मोबाइल पर या स्काईप पर तुमसे बात करूंगा न ..| " मिसेज
शर्मा दुखी मन से बोल रही थीं |
" फिर
मेरे हसबैंड ने समझाया मुझे .... जाने दो ...बेटे की इच्छा है तो उसे रोको
नहीं ...नहीं तो जिन्दगी भर कहेगा ...
मुझे मेरे माँ बाप ने पढ़ने नहीं जाने दिया अमेरिका के विद्यालय में पढ़ने ..... दो
साल में तो पूरी हो जायेगी उसकी पढाई .....पर मुझे ये बात पता है ... जो एक बार
चला गया विदेश वो फिर लौटना नहीं चाहता
..... लेकिन क्या कर सकते हैं हम .......... चाय लाती हूँ ...| मिसेज शर्मा ने बात
पलटी और किचेन में चली गयी |
मिसेज मिश्रा
चुपचाप सेंटर टेबल पर पड़ा उठा ली ...कल उसका बेटा भी शायद ऐसे ही उसे समझाने लगे
...अभी तो इंजीनियरिंग के सेकण्ड इयर में है वो .. उसके दिमाग में विचार विचार जन्म लेने लगे |
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