जाड़े
की भोर थी |
रानी अपनी
सहेलियों के साथ नदी में नहाने गयी | नहाने के बाद उसे ठंड लगने लगी | सामने एक खाली फूस की झोपड़ी देख
वह सोंची क्यों न इसे जला कर आग तापा जाय |
बस रानी के मन
की बात सुनते ही सहेलियों ने आग लगा दी झोपड़ी में | रानी अपनी सहेलियों के साथ जम
कर आग तापीं फिर अपने महल लौट गयीं |
गरीब आदमी जब
झोपड़ी में लौटा तो पाया कि उसकी झोपड़ी राख बन चुकी है |
दुखी मन से वह
गरीब आदमी राजा के दरबार में रानी की शिकायत ले कर पहुंचा |
राजा ने रानी
को दरबार में बुलवाया और पूछा कि क्या
उसने आज एक झोपड़ी जलायी है |
" हाँ
जलाई तो थी | वो खाली पड़ी थी | ... " रानी ने कहा |
" तो अब
वो गरीब बेचारा कहां रहेगा ? " राजा ने प्रश्न किया |
" ठीक है
...मैं बनवा दूंगी झोपड़ी | "
" तुम
कैसे बनवा दोगी ?....तुमको झोपड़ी खुद कमा कर बनवाना पड़ेगा |...एक झोपड़ी इतनी आसानी
से नहीं बनती .... तुमको आज से ही राजमहल से मैं निष्कासित करता हूँ ....अब जब तुम
झोपड़ी बनवा लोगी तभी मेरे महल में प्रवेश कर पाओगी | " यह कह कर राजा ने रानी
को राजमहल से निकाल दिया |
अब रानी काम
खोजने के लिए दर दर भटकने लगी |
आखिर एक
लकडहारे के घर उसे लकड़ी काटने का काम मिला |
रानी ने
पूरे एक साल काम किये तब जाकर झोपड़ी बन पायी |
झोपड़ी बना कर
जब वह राजा के पास पहुंची तब राजा ने उसे राजमहल में फिर से रख लिया |
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