"
दादी बोली , मैं कहां जाउंगी इस उमर में " बगल घर से आती
पोते की आवाज ने जी कचोट दिया |
हाय रे अबला
जीवन क्या तेरी यही कहानी
आंचल में है
दूध और आँखों में है पानी |
आज भी भी सजीव
है यह भाव हर घर में | आज भी न बदली महिला की स्थिति |
बगल घर में
दादा जी को गुजरे एक वर्ष हो गया था | अपने मकान में रहते हुए भी दादी जरूर एक छत
की तलाश में व्याकुल हो रही होगी उसने सोंचा |
दादी दादा के
पहले ही गुजर गयी होती तो समस्या ही न थी |
दादा के सामने
बेटों के खड़े होने की मजाल न थी |
आरक्षण और
कानून की फाईल ऑफिस में ताक में पड़ी थी |
और पड़ोसन दादी
के दुख में मैं तड़प रही थी |
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