Thursday, December 5, 2013

अनाथ दादी

" दादी बोली , मैं कहां जाउंगी इस उमर में " बगल घर से आती पोते की आवाज ने जी कचोट दिया |

हाय रे अबला जीवन क्या तेरी यही कहानी
आंचल में है दूध और आँखों में है पानी |

आज भी भी सजीव है यह भाव हर घर में | आज भी न बदली महिला की स्थिति |

बगल घर में दादा जी को गुजरे एक वर्ष हो गया था | अपने मकान में रहते हुए भी दादी जरूर एक छत की तलाश में व्याकुल हो रही होगी उसने सोंचा |

दादी दादा के पहले ही गुजर गयी होती तो समस्या ही न थी |

दादा के सामने बेटों के खड़े होने की मजाल न थी |

आरक्षण और कानून की फाईल ऑफिस में ताक में पड़ी थी |


और पड़ोसन दादी के दुख में मैं तड़प रही थी |

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