Saturday, August 17, 2013

पुस्तकीय ज्ञान ( लोक कथा )

एक गाँव में चार मित्र रहते थे | तीन मित्र विद्या ग्रहण करने गुरुकुल में चले गये | चौथा मित्र गाँव में ही रह गया |
कुछ वर्ष पश्चात् वे विद्या अध्ययन कर गाँव लौटे | चरों मित्र खूब घूमे कुछ दिन साथ रहे | एक दिन उन्होंने सोंचा कि हमे अपनी विद्या का उपयोग कर धन कमाने शहर जाना चाहिए | चौथा मित्र कहने लगा कि वह भी उनके साथ जाएगा | पर तीनो मित्र मना करने लगे | उनका कहना था कि चूंकि वे विद्या ग्रहण किये हैं तो वे कमाएंगे अब चौथा मित्र जो अनपढ़ है वह कैसे उनके साथ जा सकता है |

चौथा मित्र दुखी हो गया | अपने मित्र को दुखी देख तीनों मित्रों ने उसे भी साथ ले लिया | गमछे में चना और गुड़ बांध कर वे चले | कुछ दूर चलने के बाद  रास्ते में एक जंगल पड़ा | चारों मित्र एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे | एक एक उनकी निगाह अस्थि समूह पर पड़ी |
" अरे ! ये तो बाघ की हड्डियाँ लगती हैं | " चौथे मित्र ने कहा
" मुझे हड्डियां जोड़नी आती हैं | " पहले मित्र ने ज्ञान बघारा | और उसने हड्डियाँ जोड़ दीं |
" मुझे हड्डियों पर मांस पेशी चढ़ाना आता है | " दुसरे मित्र ने भी अपने ज्ञान का परिचय दिया | और उसने उस हड्डी के ढांचे पर मांस पेशी चढ़ा दी |
अब सामने एक बाघ की मूर्ति खड़ी थी |
" अरे ! मुझे तो प्राण डालना आता है | " तीसरे मित्र ने अपने ज्ञान की प्रशंसा की |
चौथे मित्र ने तीसरे मित्र को बाघ में जान डालने से मना किया पर तीसरे मित्र ने चौथे की बात न मानी  | वह भी अपना कौशल दिखा चाहता था |
" अरे ! भई ! तब तो मुझे अब पेड़ पर चढ़ जाने दो | कहीं सचमुच यह जिन्दा हो जायेगा तो मुझे खा जायेगा | "  चौथे मित्र ने परेशान हो कर कहा | अपन्रे  मित्र की नादानी पर तीनों मित्र हंस पड़े |
चौथा मित्र पेड़ पर चढ़ गया |
जैसे ही तीसरे  मित्र जान डाली बाघ में , बाघ ने एक  दहाड़ मारी और तीनों को खा गया |

 जब बाघ चला गया तब चौथा मित्र गाँव  चुपचाप गाँव लौट आया |

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