इन्जीनियर मिश्रा जी
ट्रान्सफर हो कर हमारी कालोनी में आये थे |
मिसेज
मिश्रा दुबली पतली सांवली चौबीस या पच्चीस वर्षीय बी . ए . पास महिला थी | वह अपने पति से उम्र में पन्द्रह
वर्ष छोटी थी | उनके पिता पोस्टमॉस्टर थे |
आ जाती थी वह
कभी कभी हमारे घर |
" मेरे
पिता की इच्छा मेरा व्याह इंजीनियर से
करने का था | और उन्होंने अपनी इच्छा पूरी कर ली | " बात बात में उनके मुंह
से निकल पड़ा |
बड़ी बदनामी थी
उस परिवार की | सब नए परिवार जो आते थे वे अपना खाना हीटर पर बनाते थे , पर वह
महिला खाना बिल्डिंग के बाहर लकड़ी का चूल्हा जला कर बनाती थी | मैं सोंचती थी कैसा
आदमी है इसका | जरा सी शर्म भी नहीं है उसे |
मिसेज
मिश्रा के दो बेटे थे | एक तीन साल का और
दूसरा दो साल का था | दोनों गोल मटोल
प्यारे और दुष्ट थे |
" मेरे
हसबैंड न मुझ पर बिलकुल विश्वाश करते हैं | वे दूध एक किलो लेते हैं और खुद खड़े हो
कर अपने सामने पिलवाते हैं बच्चों को | उनको लगता है मैं बच्चों को दूध न पिला
स्वयं ही पी जाउंगी | " मैं चुप थी पर मेरा अंतर्मन रो रहा था |
मिश्रा जी पता
नहीं कौन सा पाठ पढ़ा रहे थे अपने बच्चों को |
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