एक गाँव में
एक पंडित और पंडिताईन रहते थे | पंडित जी का बड़ा नाम था | वे जगह जगह प्रवचन
देते थे पर
उनकी पत्नी को बहुत अफ़सोस था कि वह उस प्रवचन को नहीं सुन पाती है |
एक बार पंडित
जी का प्रवचन उन्हीं के गाँव में था | पत्नी ने सोंचा की चूँकि इस बार प्रवचन अपने
गाँव में है इस लिए वह जरूर सुन पायेगी प्रवचन | पर उस दिन पंडित जी मछली लाये और
उसे बढ़िया से पकाने बोले पत्नी को और प्रवचन देने चले गए |
पूरा गाँव चला
प्रवचन सुनने पर पंडिताईन न जा पाई | उसे बड़ा अफ़सोस हुआ |
पड़ोसन ने उसे
प्रवचन सुनने चलने के लिए पुकारा तब पंडिताईन खुद को रोक न पाई | वह भी यह सोंच कर
चल पड़ी पड़ोसन के साथ की वह जल्दी ही लौट आयेगी और खाना बना लेगी |
पति के प्रवचन
से मुग्ध हो गई पंडिताईन | वे अहिंसा पर वक्तव्य दे रहे थे | उदाहरण दे दे कर समझा
रहे थे कि जीव हत्या पाप है |
सभी श्रोता
मंत्रमुग्ध थे |
पंडिताईन को
एकाएक ख्याल आया कि उसे तो घर में खाना भी बनाना है | वह जल्दी जल्दी लौट पड़ी घर |
पंडिताईन के
सिर में पति के प्रवचन का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने मछली उठा कर घर से बाहर फेंक दी
और सादा खाना बना लिया |
पंडित जी
प्रवचन के बाद घर लौटे | हाथ पैर धो कर खाने बैठे | पंडिताईन ने उन्हें खाना परस
दिया |
खाने में मछली
न पा कर वे चौंक गए | पंडिताईन से उन्होंने जब मछली की फरमाइश की तो पत्नी ने कहा
कि उसने मछली बाहर फेंक दी है |
प्रवचन में वह
उनके अहिंसा के मूल्य से अभिभूत है |
जब पंडित जी
को मालूम हुआ कि उनका प्रवचन पंडिताईन सुन
कर मछल्री फेंक दिया है तो हंस पड़े |
...अरे ! मैं
तो केवल प्रवचन देता हूँ | लोग भी सुनते हैं पर वे सब बातें वहीं झाड़ झूड़ कर सब
गिरा देते हैं | मैं भी सब भूल जाता हूँ | तुमने नाहक मेरी मछली फेंक दी |
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