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उसका
नाम जूलियस था | वह एक आदिवासी बालक था |
जब मास्टर बन कर स्कूल में मैंने नौकरी पकड़ी तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था | आदिवासी
बच्चों का भी दिमाग इतना तेज हो सकता है यह मुझे उसी समय पता चला |
उससे किसी भी
विषय की किसी भी पुस्तक के किसी अंश से
प्रश्न मैं पूछता था तो उत्तर उसकी
जुबान पर रहता था | उसकी हस्त लिपि गोल
गोल व सुंदर थी | उसकी मैली कमीज के
कारण उसका काला चेहरा , चिपटी नाक , और
छोटी छोटी आंख बड़ी घृणास्पद लगती थी |
कक्षा में वह
हमेशा चुपचाप अपनी पुस्तक में डूबा रहता था | उसके साथी हमेशा शोर गुल मचाते रहते थे | मैंने उसे कभी किसी से गप्पें मरते न
देखा था |
एक दिन वह
मेरा दिया गृह कार्य कर के नहीं लाया |
" जाओ !
धूप में खड़े रहो | " मैंने उसे सजा दी |
वह चुपचाप सिर
झुकाए खड़ा रहा | उसकी आंख से आंसू टपटप धरती पर गिरते रहे | मैं उसे अनदेखा कर के
कक्षा में पढ़ाता रहा |
पीरियड खतम
होने पर मैंने उसे चपरासी द्वारा कामन रूम में बुलवाया |
" देखो !
तुम इतने अच्छे बच्चे हो | तुम्हारा दिमाग इतना तेज है | फिर तुम गृह कार्य क्यों
नहीं कर के लाये ? यह कितनी गलत बात है | " मैंने उसे समझाने की चेष्टा की |
अपना सिर उठा
कर कुछ क्षण तक वह मुझे देखता रहा |
" कल शाम
को जब मैं स्कूल का गृह कार्य कर रहा था तब मेरे बापू आये और मुझे खूब पीटे | मेरी
कापी फाड़ डाले वे | फिर बोले जब देखो पढ़ता रहता है | ये नहीं कि जरा बकरी ही चरा
लायें | " रुक रुक कर बोला जूलियस |
" ओह !
....ठीक है | कल कर के लाना गृह कार्य | "
" अच्छा
| "
पर दुसरे दिन भी गृह कार्य नहीं कर के लाया जूलियस
|
मैंने फिर
उससे पूछा - " अब क्या हो गया ? "
" कापी
तो बापू फाड़ दिए थे फिर कापी कहाँ से आती | बापू बोलते हैं - मत पढ़ो | क्या होगा
पढ़ कर | " पूछने पर जूलियस बोल पड़ा |
"
तुमलोगों को तो स्कूल से पैसा मिलता है | तुम्हारे पास तो पैसा होगा ही | "
" वो
पैसा तो मिलते ही छीन कर ले जाते हैं और
शराब पी जाते हैं | "
मैंने कापी
खरीदने के लिए जूलियस को रूपये दिए | वह मना करता रहा पर मैंने उसे जबरन थमा दिए
रूपये |
एक दिन मैंने
उसका अकाउंट पोस्ट आफिस में खुलवा दिया | उसे
समझाया कि उसे कहीं से भी रूपये मिलें तो वह उन्हें पोस्ट आफिस में ही जमा
कर दे |
धीरे धीरे
अपनी सरलता और विद्याध्ययन के प्रति सुरुचि के कारण जूलियस ने मेरे हृदय में अपना
एक स्थान बना लिया |
उसे कुछ भी
पूछना होता तो वह मेरे घर बेहिचक आ जाया
था |
मेरी श्रीमती
जी भी उसे संतानवत प्रेम करती थी | मेरे घर आने पर वे उसे बिना कुछ खिलाये जाने न
देती थी |
एक दिन मैं रात में खाना खा रहा था तभी दरवाजा खटका | श्रीमती जी ने दरवाजा
खोला | बाहर जूलियस था | मैं खाना छोड़ उठ खड़ा हुआ |
" अरे
जूलियस ! आओ | क्या हुआ ? "
" मैं पढ़
रहा था उसी समय बापू पी कर घर में आये | मुझे पढ़ते देख कर एकदम बिगड़ गये | बोले -
इतना बड़ा लड़का बैठ कर खाता है | स्साला
विलायत जायेगा | घर में एक पैसा नहीं है | ठहर मैं तेरी पढाई निकलता हूँ | वे फरसा
उठा कर मुझे मारे | मैं बाल बाल बच गया | उनका फरसा जा कर दीवाल से टकराया | उनका गुस्सा और बढ़ गया
| वे फरसा ले कर मुझे मरने के लिए फिर दौड़े | मैं जान बचा कर भाग आया | "
मैं सोंच ही रहा था कि किसी के पारिवारिक
झमेले में पड़ना कहां तक उचित है तबतक मेरी श्रीमती जी बोल पडीं -
" अच्छा
किये तुम यहां आ कर | नहीं तो तुम्हारे पिता क्रोध में आ कर न जाने क्या कर बैठते
| ... चलो हाथ मुंह धो कर खाना कहा लो | "
वह सिर झुकाए
श्रीमती जी के पीछे चला |
मैं अपनी खाने
की थाली के सामने फिर से बैठ गया |
दुसरे दिन
जूलियस का बाप उसे खोजते हुए मेरे घर आया | मैंने उसे प्यार से बैठाया और समझाया |
" देखो
,तुम्हारा बेटा जूलियस पढ़ने लिखने में बहुत तेज है | तुम उसको पढ़ने क्यों नहीं
देते ? "
" बाबु !
हम लोगों को तो पेट को खाने को नहीं अंटता है | हम लोग पढ़ लिख कर क्या करेंगे ? हम
लोग कितना भी पढ़ लिख लें क्या आप लोग की बराबरी कर सकेंगे ? हम लोग का जन्म ही
मिट्टी का काम करने के लिए हुआ है |"
" ऐसा
क्यों सोंचते हो ? वह पुराना जमाना गया | अब सब बराबर हैं | मुझमें और तुममें अंतर
ही क्या है ? मेरी तरह तुम भी मनुष्य हो | "
" बाबु
जी ! आपके बोलने से क्या होगा ? दुसरे लोग तो हमें नीचा समझते हैं न | "
" किसी
के नीच कहने से कोई नीच नहीं हो जाता है | अब तुम खुद सोंचो तुम अपने लड़के को पढ़ने
दोगे तो तुम्हारा लड़का पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा | तब दुनिया खुद तुम्हे सम्मान
देगी | ये जो लोग तुम्हें देख कर हंसते हैं वे तुम्हें आदर पूर्वक घर में बुला कर
बैठाएंगे | फिर तुम्हें कुछ खर्च भी नहीं करना है | अभी तो उसे किताब कापी के लिए
सरकार पैसा सरकार देती है | तुम्हारा लड़का कालेज में हास्टल में रहेगा तो सरकार
उसे और अधिक पैसा देगी | "
"
अच्छा SS ! मुझे इतना नहीं मालूम था
| "
" और
नहीं तो क्या !...सरकार तुम लोगों को ऊँचा
उठाने के लिए कितना काम करती है | "
" ठीक है
बाबू जी ! जब आप कहते हैं तो जुलियस को मैं आपके घर में ही छोड़ दूंगा | आप लोगों
की संगति रहेगी तो वह कुछ कर सकेगा | नहीं तो मेरे पास तो वो कुछ न पढ़ सकेगा |
"
मैंने सोंचा -
अजीब मुसीबत गले पड़ गयी | अपने तो तीन बच्चे वैसे ही मौजूद हैं | अपनों की
जिम्मेदारी तो उठाई नहीं जाती अब चौथे को भी गोद ले लूं |
" नहीं
उसे अपने पास ही रखो | उसे कुछ पूछना होगा तो आ कर मेरे घर पूछ लिया करेगा |
" मैंने कहा |
" वैसे
तो आपके घर ही रहना ठीक था उसका | पर जब
आप कहते हैं तो अपने पास ही रखूंगा उसे | "
और वह जूलियस
को साथ ले मुझे नमस्कार कर चला गया |
मैंने राहत की
सांस ली | सोंचा - यहाँ तो होम करते वक्त भी हाथ जल रहे थे |
उसके बाद से
जूलियस के सामने कोई समस्या नहीं आयी |
समय पंख लगा
कर उड़ गया |
जुलियस
मेट्रिक फस्ट डिविजन में पास किया |
जूलियस का बाप
मेरे पैरों पर माथा रख दिया |
" अरे रे
! यह क्या करते हो | उठो ! उठो ! " मैंने उसे बांह पकड़ कर उठाते हुए कहा |
" नहीं
बाबूजी ! अपने मेरी आंखें खोल दी हैं | यह सब आप ही के कारण हुआ है |
जूलियस ने शहर
में कालेज में दाखिला ले लिया |
समय बीतता गया
| मैं अपने दैनिक कार्यक्रम में इतना व्यस्त हुआ कि जूलियस को भूल गया |
शनिवार का दिन
था |
आठवीं कक्षा
में मैं हिदी साहित्य पढ़ा रहा था |
" दिनकर
का पूरा नाम क्या है ? "मैंने एक लड़के से पूछा |
"......"
लड़का चुप |
" हिन्दी
साहित्य पढ़ते हो दिनकर का पूरा नाम याद नहीं ! ......." क्रोध में चपत मारने
को उठा मेरा हाथ हवा में ही रह गया |
दरवाजे पर एक
युवक खड़ा था | चेहरा कुछ परिचित सा लगा |
" सर !
नमस्कार ! ....मुझे पहचाने नहीं ....... मैं हूँ आपका जूलियस | "
" ओह !
जूलियस तुम !
आनंदवेग में
मै कक्षा से बाहर निकल आया |
जूलियस बिलकुल
बदल गया था | मेरी आंख के सामने उसकी मैली कमीज चिपटी नाक व छोटी छोटी आंख वाला
चेहरा कौंध गया |
आज उसकी लम्बी
नुकीली मूंछ रोबदार चेहरा उसके बचपन के चेहरे का उपहास कर रहा था |
" सर !
मैं इस जिले का जिलाधीश नियुक्त हुआ हूँ | "
" अच्छा
! " मेरी आंखे आश्चर्य से फ़ैल गयीं | तो अब वो आई० ए० एस० आफिसर बन गया था |
विद्यालय के
सभी शिक्षक उसे कौतुहल से देख रहे थे |
विद्यालय की
छुट्टी के बाद वह मेरे साथ मेरे घर पैदल ही गया |
" इनसे
मिलो हमारे जिलाधीश ..मिस्टर जूलियस | " मैंने अपनी पत्नी से परिचय कराया
युवक का |
जूलियस ने बढ़
कर मेरी पत्नी का चरण स्पर्श किया | आज
शिक्षक के रूप में मेरा सीना गर्व से फूल गया था |