१९७३
एक काले रंग की एम्बेसेडर कार ज्यों ही स्कूल के गेट के सामने गुज़री ,दो विद्यार्थी रास्ते के बीचोबीच लेट गए | गाड़ी ने उन्हें हटाने के लिए हार्न बजाया ,पर वे न हटे |
एक मिनट में सारे विद्यार्थियों ने कार को घेर लिया |
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मि० वर्मा मुर्दाबाद
!
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कार से बाहर निकलो !
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हेडमास्टर से माफी मांगो !
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मि० वर्मा मुर्दाबाद !
विद्यार्थियों के नारे गूंजने लगे | मि० वर्मा का चेहरा अपमान से सिंदूरी हो गया | कार के अंदर से वे चिल्लाये
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ए क्या है ? हूँ .....क्यों हल्ला मचा रहे हो ?....हटो सामने से हटो ..हटो !
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अबे कार से बाहर निकल !
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अबे ! कार से बाहर निकल !
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कार से बाहर निकलो !
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कार से बाहर निकलो !
माहौल गरम हो उठा |
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तुमलोग चाहते क्या हो ?...व्हाट इज दिस नानसेंस ?.....मि० वर्मा अवाक हो कर बोले |
कोई बोल उठा --
---ओह हो ! ....तो यही हैं ट्रांसपोर्ट आफीसर !
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हाँ हाँ ! इन्हीं के अन्डर में गाड़ी वैगरह है |
भीड़ की गरमी बढ़ गयी |
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साला कार से बाहर निकलता है कि नहीं
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हेडमास्टर से माफी मांग बे !
मि० वर्मा क्रोध में आकर कार से उतर पड़े |
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तुमलोग क्या शोरगुल मचा रहे हो ?..तुम्हें शर्म आनी चाहिए !..माफी किस बात की ?
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आप हमलोगों की फूटबाल टीम जाने के लिए गाड़ी नहीं दिए थे | .....गाड़ी
क्या आपके ससुर की है ?....जब हमारे हेडमास्टर ने गाड़ी माँगी तो आपने क्यों नहीं दिया
?....आप हमारे हेडमास्टर को क्यों डांटे ? आपको
माफी मांग कर ही जाना होगा |...एक विद्यार्थी गरजा |
---ओह हो ! उस दिन की बात ! ....उस दिन तो कोई गाड़ी थी ही नहीं .....और वो तो हमारा और उनका पर्सनल मैटर है ...हम आपस में बात कर लेंगे |......मि० वर्मा ने नम्रता का मक्खन लगाते हुए कहा |
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नहीं ! नहीं ! ....हमलोग कुछ नहीं जानते | माफी आपको मांगनी ही पड़ेगी |....हमारे हेडमास्टर का अपमान करने
का आप साहस कैसे कर सके |
विद्यार्थियों की भीड़ मि० वर्मा को घेराव कर के हेडमास्टर के आफिस तक खींच लायी |
टिफिन का समय था | हेमास्टर घर में खाना खा रहे थे | चपरासी दौड़ा- दौड़ा पहुंचा | बेचारे हेडमास्टर का कौर कंठ में अटक गया
| किसी तरह पानी पी कर स्कूल पहुंचे | वहाँ का दृश्य देख कर वे भौंचक्के रह गए | इस घटना के घटित होने की गंध उन्हें सुबह ही थोड़ी थोड़ी लगी थी पर सब कुछ इतने जल्दी हो जाएगा ...यह बात उनकी कल्पना शक्ति के बाहर की बात थी |
वे क्रुद्ध हो गए |
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ये क्या भीड़ लगा रखे हो तुमलोग ?....हटो ...जाओ यहाँ से |
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नहीं सर ! हमलोग मि० वर्मा से माफी मंगवा कर ही छोड़ेंगे | वे आपका अपमान क्यों किये ?
---वो तो ठीक है | पर वह मेरा और मि० वर्मा का आपसी मामला है | हमलोग आपस में बात कर लेंगे |
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नहीं नहीं सर ! ...हमलोग उनको ऐसे नहीं छोड़ेंगे | उनको माफी मांगनी ही पड़ेगी |
हेडमास्टर समझ गए कि इन्हें उकसाया गया है | अब ये माननेवाले नहीं | आखिर हार कर वे मि० वर्मा से बोले -----
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चलिए मेरे कमरे में बैठिये |......ये लोग तो अब टलेंगे नहीं
|
मि० वर्मा को हार कर विद्यालय के आफिस में जाना ही पड़ा |
विद्यार्थी चीखे |
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माफी हमलोगों के सामने मांगनी पड़ेगी |
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माफी हमलोगों के सामने मांगनी पड़ेगी |
बोस सर ने हाथ ऊपर उठाया | सारे बच्चे शांत हो गए | वे बोले --
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देखो सब विद्यार्थी तो एकसाथ आफिस में नहीं जा सकते हैं ; इसलिए तीन
विद्यार्थी तुम्हारे प्रतिनिधि बन कर जायेंगे |...मंजूर ?
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मंजूर ....मंजूर |
खैर तीन विद्यार्थी ग्यारहवीं कक्षा के चुने गए | उन्हें अंदर आफिस में भेजा गया | बाकी विद्यार्थी बाहर खड़े रहे | सब में खूब गर्मागर्मी रही | उन्हें तो मजा आ रहा था |
प्रतिनिधि बोल उठे ---
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हूँ अब माफी मांगिये |
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माफी क्यों मांगू ?
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अरे वाह ! आप माफी मांगने के लिए तो आये हैं |
मि० वर्मा चुप | चहरे का रंग लाल |
प्रतिनिधियों ने विद्यार्थियों
की ओर इशारा किया | वे चीख पड़े |
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मि० वर्मा माफी मांगो !
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मि० वर्मा माफी मांगो !
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वर्मा मुर्दाबाद !
हेडमास्टर
क्रुद्ध हो कर बाहर निकले | मि० बोस को बच्चों को शांत करने के लिए कहे |
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बच्चो ! तुमलोग हल्ला मत करो | ....शांत हो जाओ |.....हल्ला
क्यों कर रहे हो ?....ये ..नानसेंस ...-----मि० बोस ने डाँटते हुए आँख मारा |
विद्यार्थी
और जोर जोर से नारे लगाने लगे | अंदर बैठे मि० वर्मा पसीने पसीने हो गए |
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ठीक है भाई ! अगर तुमलोग ऐसा सोंचते हो कि मैंने उस दिन तुम्हारे
हेडमास्टर का अपमान किया है , तो मैं उनसे माफी मांगता हूँ | असल में मैंने उनका अपमान नहीं किया था | --- मि० वर्मा ने अटकते कंठ से कहा |
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खैर वो सब तो हम जानते ही हैं , पर यह असल वसल वाला किस्सा यहाँ
नहीं चलेगा | आप सीधे से माफी मांगिये |
मि०
वर्मा ने क्षमा याचना भरी आँखों से हेडमास्टर की ओर देखा |मानो वे कह रही हों कि इतना तो जलील न करवाओ |
हेडमास्टर
तो दो नदियों के पुल बने खामोश बैठे थे |
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अच्छा भाई ! ... मैं हेडमास्टर से माफी मांगता हूँ |---मि० वर्मा के हताश कंठ से निकला |
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अब हमलोगों से भी माफी मांगिये | हेडमास्टर
का
अपमान हमारा भी तो अपमान है |
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अच्छा अच्छा ! अब जाओ तुमलोग |.....क्रोध
में बोल उठे हेडमास्टर |
प्रतिनिधियों को जहाँ तक सिखाया गया था , वहाँ तक काम हो गया था |
अत: वे निकल गए | टिफिन की घंटी बजा दी गयी | सभी विद्यार्थी अपनी अपनी कक्षा में घुस गए | पूरे स्कूल में एक मिनट में नीरवता छा गयी ,मानो कुछ हुआ ही नहीं |
मि०
वर्मा अपनी कार में बैठ कर चले गए |
पूरी
कालोनी में इस बात की चर्चा जोर शोर से रही |
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कालोनी से शहर तक का आवागमन भी तो नहीं है कोई ठीक |
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आजकल स्टूडेंट अनरेस्ट बहुत हो गया है |
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भला बताइये ! यह भी कोई तरीका है किसी आफिसर की कर रोक कर उसका घेराव किया जाय और उसे जलील किया जाय |
--- अरे ! हेडमास्टर
ही
उकसाया होगा !
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नहीं नहीं ! वो तो बड़ा सीधा सदा है | इस बार की ग्यारहवीं कक्षा का बैच बड़ा दुष्ट है |
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असल बात बताऊँ मि० बोस ही उकसाया होगा | मि० वर्मा से वो बहुत चिढता है |
--- हो सकता है ! पर आजकल जनरली विद्यार्थी बड़े उदंड हैं | मेरे तो अभी छोटे छोटे हैं बड़े हो कर पता नहीं क्या निकालेंगे |
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