Sunday, April 8, 2012

चाँद ( लोक कथा )

चाँद ,  सूरज और हवा तीनों भाई बहन थे | उनकी माँ गरीब थी | एक बार उनकी धनी मौसी ने उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया | तीनों भाई बहन खुश हो गए | आज के दिन उन्हें बढ़िया खाना मिलेगा | माँ ने उन्हें खुशी मन से भेज दिया बहन के घर | शाम को वे जब लौटे तो बड़े प्रसन्न थे | माँ ने पूछा कि क्या मिला वहाँ खाने में | बेटे सूरज और बहन हवा ने खाने की बड़ी प्रशंसा की | उन्होंने  कहा माँ वहाँ बड़ा अच्छा खाना बना था |वे उसे खा कर आज बहुत खुश हैं  | चाँद ने कहा की माँ खाना सच में बहुत अच्छा था | अपने खाने में से थोड़ा खाना छुपा कर तुम्हारे लिए भी लाया हूं | तुम खा कर देखो | माँ खा कर तृप्त हुई | उसने  चाँद को गले से लगा लिया और कहा आज जिस तरह तुमने सुख पहुंचाया है | तुम बहुत  बड़े बनोगे | तुम्हे देख कर लोग प्रसन्न  होंगे | तुम्हारी एक झलक पाने के लिए लोग अपने अपने घरों से निकल जायेंगे | सूरज , हवा को देखते ही लोग अपने घरों में छुप जायेंगे | तब से जब सूरज अपनी प्रखरता पर होता है और हवा खूब अपनी शक्ति दिखाती है तब लोग अपने अपने घरों में छुप जाते हैं | लेकिन चाँद जब अपनी पूर्णता में होता है तब लोग अपने घरों से निकल कर उसे देखते हैं | वे इतने प्रसन्न होते हैं कि वे अपनी औलाद को 'चाँद सी औलाद ' कह कर संबोधित करते हैं |

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