Friday, October 27, 2023

यह मेरा घर है



16/06/22


Indu Bala Singh


‘ तुम नहीं ले के आओगे तो स्वाति घर नहीं आयेगी ? यह मेरा घर है ।’ पिता ने डपटा अपने ब्याहता पुत्र को ।


और सत्तर वर्षीय सूर्य प्रताप अपनी पुत्री को अपने स्कूटर पर बैठा कर अपने घर ले आये। सामान और बच्चे पीछे आये।


दामाद अपनी पत्नी और बच्चों को किराये के मकान में छोड़ ग़ायब हो गया था।काम नहीं आमदनी नहीं। और वह लौटा भी नहीं अपने परिवार के पास।



बेटी

 


22/06/22


Indu Bala Singh


अस्सी वर्षीय श्वेता के कष्ट को महसूस करने वाला कोई न था । श्वेता को उसका भाई फूटी आँखों नहीं देखना चाहता था अपने पैतृक घर में ।

कभी न रोनेवाली अपने पिता का हाथ पकड़ कर रो रही थी। उसके पिता कह रहे थे - क्या हुआ ? … क्या हुआ ?


पर श्वेता के मुँह से बोल न फूट रहे थे ।


रोते रोते नींद खुल गयी श्वेता की। नींद खुलने पर हालाँकि उसे ज्ञान हो गया था कि वह सब स्वप्न था। पिता को गुजरे तो बीस वर्ष हो गये थे। स्वप्न में महसूस किया कष्ट तो सत्य था । 


नींद खुलने पर भी श्वेता दो मिनट तक रोती रही।



फ़्लैट

 


03/07/22


10:36 PM


Indu Bala Singh


रात के नौ बजे थे ।


किसी एक फ़्लैट से आवाज़ आ रही थी …. 


पापा …. पापा …..


एक औरत  के  रोने की आवाज़ आई ।


पापा ….. पापा …. 


औरत की चिल्लाने की आवाज़ आई ।


पापा …. पापा …..


बच्चे की आवाज़ से लग रहा था कि वह छोटा बच्चा था क्योंकि वो आगे कुछ नहीं बोल रहा था ।


छोटा सा फ़्लैट बालकनी विहीन ।इंसान उसी में कुहुस जाता है । 


आख़िर पापा की आवाज़ क्यों नहीं आ रही है ? मैंने सोंचा ।


कोई फ़्लैट किसी फ़्लैट से बात नहीं करता । आख़िर मेट्रो सिटी का फ़्लैट है ।



मेरा पढ़ने को बहुत मन करता



#इन्दु_बाला_सिंह 


उस बुजुर्ग महिला से मिली मैं यू ही एक दिन पार्क के ट्रैक पर चलते चलते ।


कभी कभी दिखती थी वह मुझे ।


एक दिन वह खुद बढ़ कर मुझसे बात की।


मध्यवर्गीय घर में  बुजुर्गों का  काम बच्चों को पार्क ले जाना और देखते रहना कि कहीं उनके नाती या पोते को चोट तो न लग गयी ।


बहुत दिन के बाद वह बुजुर्ग महिला फिर मिली और हम दोनों ने अपने अपने मूल घरों का परिचय दिया और लिया ।


‘ मुझे पढ़ना नहीं आता।’ - एक दिन उसने कहा। 


मैं चौंक गयी ।


मैंने उसका मनोबल बढ़ाया । 


‘ -हाँ । आपके पिता को कोई समस्या होगी । इसलिये वे आपको स्कूल न भेज पाये होंगे । अब पढ़ लीजिये अपनी पोती की किताब देख देख कर ।’


वह चुप रह गयी।


कुछ दिन बाद मुझे वह बुजुर्ग महिला   मुझे पार्क में फिर मिल गयी।


 ‘ मेरा बेटा कहता है क़ि क्या करेगी तुम पढ़ कर।……. पर मुझे पढ़ना है ।  मुझे बस और दुकानों  के नाम पढ़ना  है ।’


 मैं दुःखी हुईं उसकी बातें सुनकर ।


फिर वह कहने लगी - ‘ हमारा अपना मकान था । मेरे पति के गुजरने पर मेरी बेटी ने वह मकान ख़रीद लिया मुझसे । उसने मेरे हिस्से का पैसा मुझे दे दिया। और मैंने वह पैसा अपने बेटे को दे दिया। बेटे ने  उस पैसे से यहाँ  एक छोटा मकान ख़रीद लिया ।’


मैं मौन सुन रही थी उसकी बातें ।


फिर वह कहने लगी - 


‘ मेरा बेटा कहता है तुम यहीं रहो । पर मेरी बहु मुझसे  बात नहीं करती है ।’ 


पर मुझे पढ़ना है । मेरी पोती कहती है कि आज़ी ! जब मैं पहली कक्षा में जाऊँगी तब तुम्हें पढ़ाऊँगी ।’


दिल मेरा दुःखी था। नया शहर था । 


शायद उस बुजुर्ग महिला का मुझसे मिलना मेरे नसीब में था ।


और मुझे अपनी माँ याद आयी। 


  मैंने सुना था उसे  पिता को कोसते हुये  - सबको पढ़ाते हैं । मुझे अंग्रेज़ी पढ़ाते तो कम से कम मैं बसों और  दुकानों पर अंग्रेज़ी में लिखे नाम तो पढ़ पाती ।



संस्मरण , पिता के संग यात्रा का -1

 #संस्मरण 


यात्रा का -1


23/07/22


6:27PM


#इन्दु_बाला_सिंह 


घर की बड़ी बेटी थी मैं और पिता के बहुत क़रीब थी । कहीं जाना हो तो वे मुझे साइकल पर बैठा कर ले जाते थे वे मुझे अपने साथ ।


मेरे पिता घूमने के खूब शौक़ीन थे । टीचर थे जबतक पिता मेरे  गर्मी जी छुट्टियाँ होतीं थीं और हम छुट्टी के दूसरे दिन ही शहर के घर में ताला मार कर निकल पड़ते थे अपने गाँव यानि कि दादा के घर। 


जौनपुर स्टेशन पर हम केराकत के लिये पैसेंजर ट्रेन पकड़ते थे। एक बार दो ट्रेनों के बीच काफ़ी समय था। और मुझे पिता जौनपुर घुमाने ले चले। मुझे इस समय मात्र एक घटना याद है - मस्जिद में जाना। मैं कौतूहल से उस मस्जिद को देख रही थी। 



संस्मरण , किचेन के - 1



25/07/22


3:20 PM


Indu Bala Singh


होश सम्हाला है जबसे मुझे अकेले काम करना अच्छा लगता है। 


कितनी ख़ुशी होती है जब कोई अपना काम खुद अकेले ही कर ले किसी के आदेश या मार्गदर्शन के बिना ।


उम्र पाँच वर्ष थी होगी मेरी । बस न जाने कैसे लगा कि दाल बनाना बड़ा आसान है। देखती थी माँ बटुली में दाल धो कर बैठा देती है। बस कुछ समय के बाद दाल पक जाती है। 


उस समय पीतल की बटुली होती थी घर में। 


तो भई ! बटुली में दाल धो कर लकड़ी के चूल्हे पर बैठाया मैंने। पानी अन्दाज़ से डाला बटुली के दाल में। हल्दी और नमक भी डाला मैंने। किचेन में बैठ के पकायी दाल मैंने। बीच में माँ झांक कर जा रही थी बार बार। 


´ मैं बना लूँगी ´ 


मेरा स्लोगन था।


दाल पक गयी।


अब चूल्हे से पकी दाल उतारनी थी। कपड़े से पकड़ कर दाल की बटुली चूल्हे से उतारने से हाथ के जलने का भय था।


तो भई! हमने सड़सी से पकड़ कर बटुली चूल्हे से उतारना बेहतर समझा।


बस सड़सी से बटुली उठाते ही टेढ़ी हुई बटुली। पूरे पके दाल की नदी बन गयी।


अब दाल ज़मीन पर गिर गयी तभी तो वह घटना याद है मुझे।


पाँच पैच्छे दो

 


Wednesday, 27 July 2022


1:43 AM


Indu Bala Singh


न जाने कैसे फ़ेसबूक के स्टेटस पढ़ते पढ़ते वह दो  या तीन वर्षीय बिखरे बालों वाली स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर भीख माँगनेवाली लड़की याद आ गयी मुझे ।


वह मेरे पास आ कर बोली - ´ पाँच पैछे  दो ।´


पुरानी घटना है । आज से पचास साल पुरानी … उस समय पाँच पैसे के सिक्के चलते थे । उस दिन मैं होस्टल से घर लौट रही थी। 


उस बच्ची से मैंने ढेर सारी बातें की थी और उसे पाँच पैसे का सिक्का दिया था। 


 स्टेशन तो वही आज भी है पर वह नहीं और बहुत से बच्चे माँगते अब भी दिख जाते हैं । अब वे पाँच पैसे नहीं एक रुपये माँगते हैं ।


क्या हमारी गरीबी बढ़ती  जायेगी ? 


आज जीवन की संध्याकाल में निरुत्तर हूँ ।